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प्रतिमा प्रति चैत्यं च, विंशं शतमिहोदिताः । त्रिद्वारेषु हि चैत्येषु, भवन्तीयत्य एव ताः ॥२६१॥ 'यहां पचासी जिनालय में प्रत्येक चैत्य-जिनालय में एक सौ बीस जिन प्रतिमा (मूर्ति) होती है । क्योंकि तीन द्वार वाले चैत्य में एक सौ बीस ही जिन प्रतिमा होती है । (२६१)
प्रतिद्वारं शाश्वतेषु, यच्चैत्येष्वखिलेष्वपि । स्युषट्षट्स्थानानि तथा ह्येकः स्यान्मुखमण्डपः ॥२६२॥ ततो रंगमण्डपः स्यात्पीठं मणिमयं ततः । स्तूपस्तदुपरि चतुःप्रतिमालकृतोऽमितः ॥२६३॥ ततोऽशोकतरोः पीठं, पीठं केतोस्ततः परम् । ततोऽप्यग्रे भवेद्वापी, स्वर्वापीवामलोदका ॥२६४॥ एवं त्रयाणां द्वारणां; प्रतिमा द्वादशा भवन् । अष्टोत्तरं शतं गर्भगृहे विंशं शतं ततः ॥२६५॥
सभी शाश्वत चैत्य में प्रत्येक द्वार में छ:-छः स्थान होते हैं। उसमें १- मुख मंडप, उसके बाद २- रंग मंडप, फिर.३- मणिमय पीठिका, उसके ऊपर चारो तरफ एक-एक प्रतिमा इस तरह चार प्रतिमाओं से अलंकृत, स्तूप, उसके बाद ४- अशोक वृक्ष की पीठिका, उसके बाद ५- ध्वज की पीठिका और उसके भी आगे ६- स्वर्ग की बावडियां के समान निर्मल जलयुक्त बावडियां, इस तरह तीन द्वारों को बारह प्रतिमाएं प्रत्येक स्तूप ऊपर चार-चार प्रतिमाएं होती है इससे तीनों द्वार की मिलाकर बारह प्रतिमाएं और गभारो में एक सौ आठ प्रतिमाएं होती है । इस तरह से तीन द्वार वाले प्रत्येक चैत्य में (१२+ १०८ = १२०) एक सौ बीस प्रतिमा होती है । (२६२-२६५)
चतुद्वारीणां च तेषामर्चा द्वारेषु षोडश । - गर्भालये साष्टशतं, चतुर्विशं शतं ततः ॥२६६॥ ... जो चार द्वार वाला चैत्य होता है उसमें द्वार सम्बन्धी प्रतिमा सोलह होती है और गर्भगृह (गभारे) में एक सौ आठ होती है । इस तरह कुलजोड करते चार द्वार वाले जिनालय में एक सौ चौबीस जिन प्रतिमा होती है । (२६६)