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ग्रहाणां पंक्तयाश्चात्र, षट्सप्तत्यधिकं शतम् । प्रतिपंक्ति च षट्षष्टिः स्युहा अपि ॥२५५॥
इस मनुष्य क्षेत्र में ग्रहों की एक सौ छिहत्तर (१७६) पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में ६६-६६ ग्रह है । यहां भी अभिजित नक्षत्र के समान जानना । (२५५)
एवं च - भानां शतानि षट् त्रिंशत् पण्णवत्यधिकान्यथ । . एकादशग्रह सहस्राः शताः षोडशाश्चः षट् ॥२५६।।
और इस तरह से मनुष्य क्षेत्र में सर्व मिलाकर छत्तीस सौ छियानवे नक्षत्र है और ग्यारह हजार छ: सौ सोलह (११६१६) ग्रह है । (२५६)
स्युस्ताराः कोटि कोटयोऽत्राष्टा शीत्यालक्षकैर्मिताः। ..... सहस्ररपि चत्वारिंशता शतैश्च सप्तभिः ॥२५७॥ -
इस मनुष्य क्षेत्र में सब मिलाकर अठासी लाख चालीस हजार सात सौ । (८८४०७००) कोटा कोटी तारा है । (२५७) . ..
अथात्र यानि चैत्यानि, शाश्वतान्यथ तेषु याः । __अर्हतां प्रतिमा वन्दे, ताः संख्याय श्रुतोदिताः ॥२५८ ॥
अब शाश्वत प्रतिमा का वर्णन करते हैं - इस अठाई द्वीप में जो शाश्वत . चैत्य मंदिर जिनालय है और उसमें जो शास्त्र में शाश्वती जिन प्रतिमा कही है उसकी संख्या गिनती पूर्वक मैं वंदन करता हूँ । (२५८)
शतस्त्रयोदशैकोनपन्चाशा ये पुरोदिताः । गिरिणां तेषु ये पन्च मेखः प्राग्निरूपिताः ॥२५६॥ मेरौ मेरौ काननेषु, चतुर्पु दिक्चतुष्ट ये ।
चैत्यमेकैकमेकं च, मूर्ध्नि सप्तदशेति च ॥२६०॥
पहले जो तेरह सौ उनचास पर्वत कहे है उसमें से पांच मेरू पर्वत का जो वर्णन किया है उन प्रत्येक मेरूपर्वत के जो चार-चार वन उद्यान है उन प्रत्येक वन की चारो दिशा में एक-एक शिखर पर एक जिनालय है । अतः एक मेरूपर्वत पर सत्रह (४४४ = १६+१= १७) जिनालय है । और पांचों मेरू पर्वत के एकत्रित करते पचासी (१७४५=८५) चैत्यालय होते हैं । (२५६-२६०)