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प्रति पंक्तिचषट्षष्टि संख्याकाःशशि भास्कराः। • सूची श्रेण्या स्थिता जम्बू द्वीपेन्दुरविभिः समम् ॥२५०॥
इन प्रत्येक पंक्तियों में छियासठ चन्द्र और सूर्य रहे हैं और ये चन्द्र, सूर्य जम्बू द्वीप में रहे चन्द्र, सूर्य की समश्रेणि में रहे हैं । (२५०)
एवं पंक्तयश्चतस्रोऽपि, पर्यटन्ति दीवानिशम् । मृगयन्त्य इवाशेषवच्चकं कालतस्करम् ॥२५१॥
इस तरह से चन्द्र और सूर्य की ये चारों पंक्तियां रात दिन लगातार पर्यटन कर रही हैं । वह मानो सब को ठगने वाले काल रूपी चोर को खोज करता न हो? इस तरह दिखता है । (२५१) .
द्वात्रिंशं शतमित्येवं, नरक्षेत्रे हिमांशवः । द्वात्रिंशं शतमांश्च, शोभंतेऽदभ्रतेजसः ॥२५२॥
इस प्रकार इस मनुष्य क्षेत्र में एक सौ बत्तीस तेजस्वी चन्द्र और एक सौ । बत्तीस सूर्य है । (२५२).
. नक्षत्राणां पंक्तयश्च षट् पन्चाशद्भवेदिह । - प्रति पंक्ति च षट् पष्टिः घट् पष्टिः स्युरूड्न्यपि ॥२५३॥
इस मनुष्य क्षेत्र में नक्षत्रों की छप्पन पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में छियासठ-छियासठ नक्षत्र है । जैसे कि अभिर्जित नक्षत्र की एक पंक्ति और उस एक पंक्ति में छियासठ अभिजित नक्षत्र, वैसे अभिजित सद्दश छप्पन (२८४२=५६) नक्षत्र उसकी छप्पन पंक्ति और एक-एक पंक्तियों में छियासठ-छियासठ नक्षत्र आते हैं। (२५३)
जम्बू द्वीप स्थत त्तद्भः, पंक्तया चरन्त्यमून्यपि । जम्बूद्वीपग्रहै: पंक्तया चरन्त्येवं ग्रहा अपि ॥२५४॥
अथवा जम्बूद्वीप में रहे उस-उस नक्षत्रों की पंक्ति में सर्व वे नक्षत्र भ्रमण करते है और उसी तरह जम्बूद्वीप में रहे उन ग्रहों की पंक्ति में वे सर्व ग्रह भी भ्रमण करते है । (२५४) .