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________________ (१५६) विहरमान भगवान की जो जघन्य संख्या बीस अथवा दस कही है, इससे कम संख्या में भगवान विहरमान हो ऐसा बन नहीं सकता । अतः उसके बिना अन्य श्री तीर्थंकर परमात्मा यथायोग स्थान में गृहस्थादि अवस्था में तो हो सकते हैं। केवल विहरमान अवस्था में जघन्य से २० या १० होते है । (२३७) . कोटिद्वयं केवलि नो, द्वे च कोटि सहस्रके। . . साधवः स्युर्जघन्येन, न्यूना इतो भवन्ति न ॥२३८॥ केवल ज्ञानी जघन्य से दो करोड मुनि होते है और साधु भगवन्त दो हजार करोड होते है । इससे कम तो होते ही नहीं है । (२३८)... यद्येकः केवली तेभ्यः, सिद्ध येत्साधुर्दिवं व्रजेत् । तदाऽवश्यं भवेदन्यः, केवली प्रव्रजेत्परः ॥२३६॥ . इन दो करोड केवल ज्ञानी में से किसी समय एक केवल ज्ञानी भगवन्त मोक्ष में जाय तो उसके स्थान पर अन्य किसी भी एक को तो केवल ज्ञान उत्पन्न होता ही है और किसी एक की दीक्षा होती है । तथा दो हजार करोड साधु में से कोई एक साधु देवलोक में जाता है अथवा केवल ज्ञानी बनता है तो उसके स्थान पर किसी एक की नयी दीक्षा अवश्यमेव होती है, अन्यथा केवली और साधुओं की जघन्य संख्या में भी न्यूनता की आपत्ति आती है । (२३६) चक्रिशा!ि शीरिणां च, शतं.पन्चाशताधिकम् । उत्कर्षतो जघन्येन, ते भवन्तीह विंशतिः ॥२४०॥ चक्रवर्ती, वासुदेव और बलदेव उत्कृष्ट एक सौ पचास होते हैं और जघन्य से वे केवल बीस होते हैं। (२४०) तथोक्तं - प्रवचन सारोद्धारे - "उक्कोसेणं चक्की सयं दिवढं च कम्भूमीसुं। वीसं जहन्नभावे केसव संखावि एमेव ॥२४१॥" तथा यह बात प्रवचन सारोद्धार में भी कहा है कि - कर्मभूमियों में उत्कृष्ट रूप में चक्रवर्ती एक सौ पचास होते हैं और जघन्य से बीस होते हैं । वासुदेव (बलदेव) की भी संख्या इसी के अनुसार ही कहा है । (२४१)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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