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महाहृदास्त्रिंशदिह, पन्चाशच्च कुरु हृदाः । भवत्यशीतिरित्येवं, हृदानां सर्व संख्यया ॥२१६॥
इस मनुष्य क्षेत्र में तीस महासरोवर है और पचास कुरुक्षेत्र के सरोवर है । इस प्रकार कुल सारे मिलाकर अस्सी सरोवर है । (२१६)
भरतादि क्षेत्र महानदी कुण्डानि सप्ततिः । विदेहविजयस्थानि, तानि विंशं शतत्रयम् ॥२२०॥ पष्टिरन्तर्नदीनां स्युरित्येवं सर्व संख्यया । . चतुः शतीह कुण्डानां, पन्चाशदधिका भवेत् ॥२२१॥ ..
भरतादि की महानदियों के सत्तर कुंड है उसमें गंगा के पांच; सिन्धु के पांच, रक्ता के पांच रक्तवती के पांच, रोहिता के पांच, रोहितांशा के पांच, स्वर्ण कूला के पांच, रूप्यकूला के पांच, हरिकांता के पांच, हरिसलिला के पांच, नरकान्ता के पांच, नारीकान्ता के पांच, शीता के पांच शीतोदा के पांच, = १४५५ = ७० महाविदेह क्षेत्र के विजयों की नदियां के तीन सौ बीस (१६०४२ = ३२०) कुंड है और विजय को आन्तर करने वाली साठ अन्तर नदियों के साठ कुंड है । इस तरह सब मिलाकर कुल चार सौ पचास (७०+३२०+६० =४५०) कुंड है । (२२०-२२१)
भरतादि क्षेत्रगता, महानद्योऽत्र सप्ततिः । विदेहविजयस्थानां, तासां विशं शंतत्रयम् ॥२२२॥ अन्तर्नद्याः षष्टिरिति परिच्छदजुषामिह । पन्चाशा मुख्य सरितां, सर्वाग्रेण चतुःशती ॥२२३॥ सा चैवं- गंगा सिन्धुरक्तवती रक्ताः प्रत्येक मीरिता ।
पन्चशीतिस्तथा शीता शीतोदारूप्य कूलिकाः ॥२२४॥ स्वर्ण कला नरकान्ता नारीकान्ता च रोहिता । रोहितांशा हरिकान्ता, हर्यादि सलिलापि च ॥२५॥ द्वादशन्तरनद्यश्च पन्चपन्चाखिला इमाः । परिच्छदापगास्त्वासां, ज्ञेयाः पूर्वोक्तया दिशा ॥२२६॥