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________________ (१५१) सहस्राङ्गाः पन्चदशेत्येवं कूटानि भूभृताम् । सर्वाग्रेणैक पन्चाशे, द्वे सहस्त्रे शतत्रयम् ॥२१४॥ भद्रसाल वने मेरोर्यानि दिक्षु विदिक्षु च । तानि दिग्गज कूटानि, चत्वारिंशद्भवेदिह ॥२१५॥ द्रूणां दशानामष्टाष्ट, यानि दिक्षु विदिक्षुि च । कूटानि तान्यशीतिः स्युनूक्षेत्रे सर्व संख्यया ॥२१६॥ शतं वृषभ कूटानां, सप्तत्याऽधिकमाहितम् । भवन्त्येवं भूमि कूटा, नवत्याढयं शतद्वयम् ॥२१७॥ महावृक्षा दश तत्र, पन्च शाल्मलिसंज्ञकाः । शेषा जम्बूर्धातकी च पाश्चान्त्यौ महापरौ ॥११८॥ इस मनुष्य क्षेत्र के अन्दर पर्वत में से निकलने वाली आठ दाढायें हैं हिमवंत पर्वत में से चार निकलती है और शिखरी पर्वत में से चार निकलती है । कूट चार प्रकार के है । १- वैताढय पर्वत के, २- शेष पर्वतों के, ३- एक हजार योजन के (सहस्र कूट) ४- भूमि सम्बन्धी - पृथ्वी पर रहे कूट उसमें वैताढय पर्वत के कूट पंद्रह सौ तीस (१७०४६ = १५३०) है, शेष पर्वत के कूट आठ सौ छः (८०६) है और एक हजार योजन के ऊंचाई वाले कूट पंद्रह हैं । इस तरह सब मिलाकर पर्वत के कूट दो हजार तीन सौ इकावन (१५३०+८०६+१५ = २३५१) होते है जबकि भूमि सम्बन्धी कूट कुल दो सौ नब्बे होते हैं । वह इस प्रकार भद्रशाल वन में मेरूपर्वत की दिशा और विदिशा में रहे दिग्गजकूट का कुल संख्या चालीस ८४५ = ४० है । मनुष्य लोक में रहे दस महावृक्षों की दिशा विदिशा में आठ-आठ कूट होते है, वे सब मिलाकर अस्सी ८x१० = ८० होते हैं। मनुष्य क्षेत्र में सब मिलाकर एक सौ सत्तर वृषभ कूट होते हैं । इस प्रकार भूमि सम्बन्धी पृथ्वी के ऊपर कूट कुल दो सौ नब्बे ४०+८०+ १७० = २६० होते हैं। जो दस महावृक्ष है उसमें शाल्मली नाम के पांच वृक्ष है और शेष पांच जम्बू वृक्ष-धात की वृक्ष, महाधातकी वृक्ष, पद्म वृक्ष और महापद्म वृक्ष ये पांच एक-एक वृक्ष है । इस तरह कुल महावृक्ष है । (२१२-२१८)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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