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________________ (१५०) अन्तद्वीश्च षट् पन्चश देवं युग्मि भूमयः । षड्शीतिर्नर स्थानान्येवमेकोत्तरं शतम् ॥२०॥ मनुष्य क्षेत्र का संक्षेप में वर्णन करते हैं :- अब सुख पूर्वक बोध हो इसके लिए इस मनुष्य क्षेत्र के अन्दर अढाई द्वीप समुद्र है दो समुद्र है पांच भरत पांच ऐरवत क्षेत्र और पांच महाविदेह क्षेत्र है। इस तरह पंद्रह कर्म भूमिया होती है । पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु, पांच हैरण्यवत क्षेत्र, पांच सम्यकक्षेत्र पांच हैमवत क्षेत्र और पांच हरिवर्ष क्षेत्र, इस तरह ६४५ = ३० अकर्म भूमिया होती है एवम् छप्पन अन्तर द्वीप होते हैं । इस प्रकार कुल ३० अकर्म भूमि और ५६ अन्तर द्वीप मिलाकर छियासी युगलिक की भूमि है और सब मिलाकर कुल मनुष्य के स्थान (१५+३०+५६ = १०१) एक सौ एक होता है । (२०४-२०८) . तथाऽत्र मेरवः पन्चविंशतिर्गजदन्तकाः । वक्षस्काराद्रयोऽशीतिः, सहस्त्रं कान्चनाच लाः ॥२०६॥.. विचित्राः पन्च वित्राश्च, पन्चाथ यमकां चलाः। दश त्रिशद्वर्षधरा, इषुकार चतुष्टयम् ॥२१०॥ विंशतिर्वृवैताढयाः, शतं दीर्घाः ससप्ततिः । एकोनपन्चाशान्यद्रि शतान्येवं त्रयोदश ॥२११॥ इस मनुष्य क्षेत्र में पांच मेरू पर्वत है, बीस गजंदन्त पर्वत है अस्सी वक्ष स्कार पर्वत है, एक हजार कांचन गिरि पर्वत है, पांच विचित्र नाम के पर्वत है, पांच चित्र नाम के पर्वत है, दस यमक नाम के पर्वत हैं, तीस वर्षधर पर्वत हैं, चार इषुकार पर्वत हैं, बीस वृत्त वैताढय पर्वत हैं और एक सौ सत्तर दीर्घ वैताढय पर्वत हैं । इस तरह कुल मिलाकर ५+२०+८०+१०००+५+५+१०+३०+४+२०+ १७० = १३६४ तेरह सौ उनचास पर्वत मनुष्य क्षेत्र के अन्दर है । (२०६-२११) अष्टौ दाढा: पार्वताः स्युः, कूटास्त्विह चतुर्विधाः । वैताढय शेषाद्रि सहस्रांक भूकूट भेदतः ॥२१२॥ तत्र च - सार्द्ध सहस्रं वैताढय कूटानां त्रिंशताऽधिकम्। शेषाद्रिकूटानामष्टशती षड्धिका भवेत् ॥२१३॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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