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(१४८)
यदि कण्ठ गत प्राणो, मनुष्य क्षेत्रतः परम ।
मनुष्यो नीयते नासौ म्रियते तत्र कर्हिचित् ॥ १६५ ॥
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- मृत्यु शय्या पर पड़े हुए किसी मनुष्य को कोई देव, मनुष्य क्षेत्र से बाहर ले जाय फिर भी वहा उसकी मृत्यु नहीं होती है । (१६५)
अथावश्यंभाविजन्मक्षीणायुष्कौ च तौ यदि । तदा सुरस्य तन्नेतुर्भवदेद्वाऽन्यस्य कस्यचित् ॥१६६॥ मनस्तथैव येनैनामासन्न प्रसवां स्त्रियम् ।
तं वा कण्ठ गत प्राणं, नरक्षेत्रे पुनर्न येत् ॥१६७॥ युग्मं ॥
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अब यदि इन जीवों का जन्म अथवा मृत्यु का समय आया हो तो वह ले जाने वाला देव अथवा तो अन्य किसी देव को इस प्रकार का विचार उद्भवउत्पत्ति होती है और इससे ही नजदीक में प्रसव वाली स्त्री को और कंठगत प्राण वाले मनुष्य को मनुष्य क्षेत्र के अन्दर अवश्य ले जाता है । (१६६-१६७)
एवं नातः परमहर्निशादि समय स्थिति: ।
न बादराग्निर्न नदी, न विद्युद्गर्जिनीरदाः ॥१६८॥
नार्हदाद्या न निधयो, नायने नैव चाकराः । नेन्दुवृद्धिक्षयौ नोपरागोऽर्केन्द्वोर्न वा गतिः ॥१६६॥
इस मनुष्य क्षेत्र के बाहर क्या-क्या नहीं है उसे कहते है :- इस मनुष्य क्षेत्र के बाहर दिन रात आदि समय की व्यवस्था नहीं है, बादर अग्निकाय नहीं है नदियां, बिजली, गर्जना, बादल, अरिहंत भगवान, चक्रवर्ती बलदेव वासुदेव आदि नहीं है, निधि, (खजाना) उत्तरायण अथवा दक्षिणायन, खान, चन्द्र का क्षय या वृद्धि, चन्द्र सूर्य आदि ग्रहण एवम् चन्द्र सूर्य आदि गति उदय अस्त आदि कुछ भी नहीं होता है । (१६८-१६६)
तथाहु:- अरिहंत समय वायर अग्गी विज्जू बलहगा थाणआ ।
आगर नइ निहि उव राग निग्गमे वुढि अयणं च ॥ २००॥" शास्त्र में भी कहा है कि - "मनुष्य क्षेत्र के बाहर अरिहंत्यादि, समय की व्यवस्था, बादर अग्नि, काय, बादल, बिजली, गना, मेघ खान नदियां, निधान, सूर्य