________________
(१४७)
४८२२२०००००००००००००००० तारा है ४८२२२ ऊपर सोलह बिन्दु है । (१८७-१८६) एव च - लक्षाण्यष्टौ पुष्करा) तावान्फालोवदवारिधिः ।
चत्वारि धातकी खण्डो, द्वे लक्षे लवणोदधिः ॥१६॥ एवं द्वाविंशतिर्लक्षाण्येकतः परतोऽपि च । मध्ये जम्बूद्वीप एकं, लक्षमायतविस्तृतः ॥१६१॥ पन्चचत्वारिंशदेवं, लक्षाण्यायतविस्तृतम् । नरक्षेत्रं परिक्षेपो, ज्ञेयोऽस्य पुष्करार्द्ध वत् ॥१६॥
आठ लाख योजन का पुष्करार्ध द्वीप, आठ लाख योजन का कालोदधि समुद्र चार लाख योजन का धातकी खण्ड और लाख योजन का लवण समुद्र इस . तरह (८+८+४+२ = २२) बाईस लाख योजन का विस्तार एक तरफ से है और दूसरी तरफ से भी इसी ही तरह बाईस लाख योजन विस्तार गिनना । इससे कुल ४४ चवालीस लाख योजन होता है और बीच में एक लाख योजन के विस्तार वाला जम्बू द्वीप है । इस तरह कुल मिलाकर पैंतालीस लाख योजन प्रमाण मनुष्य क्षेत्र होता है । इस मनुष्य क्षेत्र की परिधि पुष्करार्ध क्षेत्र की परिधि के समान जानना । : (१६०-१६२) .: . एतावतो नरक्षेत्रात्, परतो न भवेन्नृणाम् ।
गर्भाधानं जन्म मृत्यूं समूर्छि मनरोद्भवः ॥१६३॥
इस पैंतालीस लाख योजन के मनुष्य क्षेत्र के बाहर मनुष्यों का गर्भाधान, • जन्म, मृत्यु और समुर्छिम मनुष्य की उत्पत्ति नहीं होती है । (१६३) ... आसन्न प्रसवां कश्चित्स्त्रियं नयति चेत्सुरः ।
. नरक्षेत्रात्परं नासौ, प्रसूते तत्र कर्हि चित् ॥१६४॥ ... यदि नजदीक में ही प्रसव समय वाली किसी स्त्री को कोई देव, मनुष्य
क्षेत्र से बाहर ले जाय, फिर भी वहां मनुष्य क्षेत्र से बाहर उसे कभी भी प्रसव नहीं होता है । (१६४)