SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४६) - अन्य चार परमेष्ठि भगवन्त के साथ में जैसे परमेष्ठी श्री अरिहंत परमात्मा शोभायमान होते है वैसे जम्बूद्वीप में रहे महामेरू पर्वत अन्य चार धातकी खण्ड के दो और पुष्करार्ध द्वीप के दो, कुल चार मेरू पर्वत से शोभायमान होता है । (१८३) प्रागुक्ताख्येषु पूर्वार्द्ध, विजयेष्वधुना जिनाः । चन्द्रबाहुर्भुजङ्गश्चेश्वरोनेमि प्रभोऽपि च ॥१८४॥ . पश्चिमाद्धे तु तेष्वेव, वीर सेनो जिनेश्वरः ।.... महाभद्र देवयशोऽजितवीर्या इति क्रमात् ॥१८५॥ पुष्करार्ध क्षेत्र के पूर्वार्ध में १- पुष्कलावती विजय में चन्द्रबाहु स्वामी, २- वत्स विजय में भुजंग स्वामी, ३- नलिनावती विजय में ईश्वरनाथ और ४- वप्र विजय में नेमिप्रभ स्वामी नाम के चार जिनेश्वर भगवान अभी विचरते है और पश्चिमार्ध मेंभी उसी ही नाम वाले विजयों में क्रमशः १- वीर सेन स्वामी, २- महाभद्र स्वामी, ३- देवयशा स्वामी, और ४- अजित वीर्य स्वामी इन नाम वाले चारों जिनेश्वर भगवान वर्तमान काल में विचरते हैं । (१८४-१८५) द्वीपार्थेऽस्मिन्नगादीनां, संग्रहः सर्वसंख्यया । धातकी खण्डवद् ज्ञेयोऽविशेषोन्नोदितः पृथक् ॥१८६॥ यह पुष्करार्ध द्वीप में पर्वतादि की संख्या का कुल जोड़ धातकी खण्ड के समान ही होने से यहां अलग नहीं कहा है । (१८६) द्विसप्ततिः शशभृतस्तावन्त एव भास्कराः । षट् सहस्राणि षट्त्रिंशा त्रिशत्यत्र महाग्रहाः ॥१८॥ नक्षत्राणां सहस्र द्वे, प्रज्ञप्ते षोडशोत्तरे । प्रमाणमथ ताराणां, पुष्कराद्धे निरूप्यते ॥१८८॥ अष्टचत्वारिंशदिह, लक्षा द्वाविंशति स्तथा । सहस्राणि द्वे शते च, स्युस्ताराः कोटी कोटयः ॥१८६॥ इस पुष्करार्ध द्वीप में चन्द्र बहत्तर (७२) है सूर्य भी बहत्तर है, महाग्रह छ: हजार तीन सौ छत्तीस (६३३६) है । नक्षत्र दो हजार सोलह (२०१६) है और तारा अड़तालीस लाख बाईस हजार दो सौ (४८२२२००) कोडा कोडी प्रमाण है
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy