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इस तरह प्रत्येक का अन्तर = २४०६५६- १/७ आता है । उदक्कुरूषु पूर्वर्द्धि, पद्मानामा महातरुः ।। पश्चिमाधे महापद्मस्तौ जम्बू वृक्षसोदरौ ॥१७४ ॥
पूर्वार्ध के उत्तर कुरुक्षेत्र में पद्म नाम का महावृक्ष हैं और पंश्चिमार्ध के उत्तर कुरु क्षेत्र में महापद्म नाम का महावृक्ष है । और ये दोनों जम्बूवृक्ष के समान है। (१७४)
पद्मनाम्नो भूमिरूहः, पद्मनामा सुरः पतिः । महापद्मस्य तु स्वामी, पुण्डरीकः सुरोत्तमः ॥१७॥
पद्मनाम के वृक्ष का अधिष्ठाता देव पद्मनाम का है और महापद्म वृक्ष का अधिष्ठायक पुंडरीक नाम से देव है । (१७५) . ..
स्युर्देवकुरुवोऽप्येवं, किंत्वत्र निषधात्परौ । विचित्र चित्रावचलौ, ततः पन्च हृदाः क्रमात् ॥१७६॥ पूर्वार्द्ध चापरार्द्धं च स्यातां शाल्मलिनाविह । .
जम्बूवृक्षसधर्माणावेतावपि स्वरूपतः ॥१७७॥
उत्तर कुरु के समान देव कुरु मेंभी यह सब व्यवस्था है, परन्तु यहां निषध पर्वत के बाद विचित्र और चित्र नाम के दो पर्वत है और उसके बाद क्रमशः पांच सरोवर है । पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध के देवकुरु में शाल्मली नामक दो महावृक्ष है । उसका सम्पूर्ण स्वरूप जम्बू वृक्ष समान है । (१७६-१७७)
पुष्कराद्धेऽथ यौ मेरू, स्यातां पूर्व परार्द्धयोः । धातकी खण्डस्थ मेरू समानौ तौ तु सर्वथा ॥१७८॥