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(१४३) शतानि नव सैकोनषष्टीनि योजनस्य च । सप्तक्षुण्णस्यैक भागस्तत्रोपत्तिरू च्यत ॥१७१॥ दैध्य हृदानां पन्चानां, यत्सहस्राणि विंशतिः । साहस्रयमकव्यासयुक्तं तत्कुरु विस्तृतेः ॥१७॥ विशोध्यतेऽथयच्छेषं, तत्सप्तभिर्विभज्यते ।
सप्तानां व्यवधानानामेवं मानं यथेदितम् ॥१७३॥
नीलवानं पर्वत से क्षेत्र के अंत भाग तक में सात अंतरा आते है वह इस प्रकार है - १- नीलवान पर्वत से दो यमक पर्वत पर यमक पर्वत का, २- दो यमक पर्वत से प्रथम सरोवर का, ३- प्रथम सरोवर से दूसरे सरोवर का, ४- दूसरे सरोवर से तीसरे सरोवर का, ५- तीसरे सरोवर से चौथे सरोवर का, ६- चौथे सरोवर से पांचवे सरोवर का और ७- पांचवे सरोवर से क्षेत्र की सीमा का अन्तर है । इन सातों का अन्तर समान माप वाला है । उसमें से प्रत्येक का माप दो लाख चालीस हजार नौ सौ उनसठ तथा एक सप्तमांश (२४०६५६- १/७) योजन होता है । उसका इस प्रकार होता है पांच सरोवर की लम्बाई का कुल जोड बीस हजार योजन होता है
और यमक पर्वत का विस्तार एक हजार योजन का है । इस इक्कीस हजार योजन को कुरुक्षेत्र के विस्तार में से निकाल देने पर जो शेष रहे, उसका एक समान सात करने पर पूर्व कहे अनुसार व्यवहार का माप आता है (१६६-१७३) वह इस प्रकार :- : :
१७०७७१४ योजन कुरूक्षेत्र का विस्तार है। २१००० योजन पांच सरोवर और यमक पर्वत का विस्तार निकाल दें १६८६७१४ शेष रहता है, इसे सात का भाग देना । ७) १६८६७१४ (२४०६५६