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४४०६१६ - योजन मेरू पर्वत के साथ में भद्रशाल वन की लम्बाई ४००० - योजन = दो गजदन्त पर्वतों का विस्तार .. ४३६६१६ - योजन = कुरुक्षेत्र की जीवा
आयाममानयोः प्राच्य प्रतीच्य गजदन्तयोः । योगे भवेद्धनुः पृष्टं, कुरुद्वय इदं तु तत् ॥१६५॥ लक्षाः षट्त्रिंशदेकोनसप्ततिश्च सहस्रकाः । शतत्रयं योजनानां पन्चत्रिंशत्समन्वितम् ॥१६६॥
पूर्व दिशा और पश्चिम के दो गजदन्त पर्वत की लम्बाई एकत्रित करने से जो संख्या आती है वह प्रत्येक कुरुक्षेत्र का धनुष्पृष्ठ होता है और वह छत्तीस लाख उनहत्तर हजार तीन सौ पैंतीस (३६६६३३५) योजन का होता है । (१६५-१६६) वह इस प्रकार :
१६२६२१६ योजन = पूर्व दिशा के गज़दन्त की लम्बाई २०४३२१६ योजन = पश्चिम दिशा के गजदन्त की लम्बाई ३६६६३३५ योजन = कुरुक्षेत्र का धनुः पृष्ट होता है । धातकीखण्ड वदिहाप्यग्रतो नीलवद्रेिः । यमकावुदक्कुरूषु, सहस्रं विस्तृताय तौ ॥१६७॥ ततः परं हृदाः पन्च, स्युर्दक्षिणोत्तरायताः ।
सहस्रांश्चतुरो दीर्घा, द्वे सहस्त्रे च विस्तृताः ॥१६८॥ .
धातकी खंड के समान यहां पर भी नीलवान पर्वत के आगे उत्तर कुरूक्षेत्र में एक हजार योजन की लम्बाई चौड़ाई वाले दो यमक (यमक-जमक) पर्वत है। इन दो यमक पर्वत के बाद पांच सरोवर आते है ये सरोवर दक्षिण उत्तर चार हजार योजन लम्बे और दो हजार योजन चौड़े है । (१६७-१६८)
नीलवतो यमकयोस्ताभ्यामाद्यहृदस्य च । मिथो हृदानां क्षेत्रान्तसीम्नश्च पन्चमहृदात् ॥१६६॥ सप्तप्येतान्यन्तराणि, तुल्यान्यैकैककं पुनः । लक्षद्वयं योजनानां चत्वारिंशत्सहस्रकाः ॥१७० ॥