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पुण्डरीकाहृदोपेतस्ततश्च शिखरी गिरिः । तम्माद्रक्ता रक्तवती, स्वर्णकूला विनिर्ययुः ॥१२६॥
ऐरवत क्षेत्र के बाद पुंडरीक नाम के सरोवर से युक्त शिखरी नाम का पर्वत आता है । और उस सरोवर में से रक्ता, रक्तवती और स्वर्णकला नाम की तीन नदियां निकलती है । (१२६)
तत्रादिमे द्वे सरितौ, क्षेत्रमैरतं गते । जगाम हैरण्यवर्तविकटापातिनाऽङ्कितम् ॥१२७॥
उसमें से प्रथम दो रक्ता और रक्तवती नाम की नदियां ऐरवत क्षेत्र में जाती है, और तीसरी स्वर्णकूला नदी हैरण्यवत क्षेत्र में जाती है । (१२७)
ततश्च हैरण्यवतं, विकटापातिनाऽङ्कितम् । ततो महापुंडरीकहृदवान् रूक्मिपर्वतः ॥१२८॥
इस शिखरी पर्वत के बाद हैरण्यवत क्षेत्र आता है उसके मध्य में विकटापाती नाम का वृत वैताढय पर्वत रहा है । और इस हैरण्यवत क्षेत्र के बाद महापुंडरीक नामक सरोवर से युक्त रूक्मी पर्वत है । (१२८)
एतद्भवा रूप्यकूला, हैरण्यवतगामिनी । रम्यकान्तर्नरकान्ता, प्रयात्येतत्समुद्भवा ॥१२६॥
इस पुंडरीक सरोवर में से निकलकर रूप्यकूला नामक नदी हैरण्यवत क्षेत्र में जाती है और इस सरोवर में से निकलकर नरकान्ता सरिता रम्यक क्षेत्र में जाती है । (१२६) .
ततोऽर्वाग् रम्यकक्षेत्रं, माल्यववृत्तभूधरम् । के सरिहदवन्नीलवन्नामा पर्वतस्ततः ॥१३०॥
इस रूक्मी पर्वत से आगे रम्यक क्षेत्र आता है उसके मध्य में माल्यवान् वृत्त वैताढय पर्वत आता है । इस रम्यक् क्षेत्र के बाद केसरी सरोवर से युक्त नील वंत नामक पर्वत आता है । (१३०)
प्रवर्तते विदेहान्तः, शीतैतन्नगसम्भवा । नारीकान्ता रम्यकान्तः, प्रसर्पत्येतदुद्गता ॥१३१॥