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________________ (१३४) ये चारों नदियां, दो हरिसलिला, दो शीतोदा सरोवर में निकलती है, तब दो सो योजन के विस्तार वाली और वहां चार योजन की गहराई वाली होती है और अन्त विभाग में उन नदियों का विस्तार और गहराई दस गुणा होती है । अर्थात् अन्त में नदियों का विस्तार दो हजार योजन का और गहराई चालीस योजन की होती है । (१२० ) विस्तीर्णान्यायतान्यासां कुण्डानि च चतसृणाम् । सविंशानि योजनानां शतान्येकोन विंशतिम् ॥१२१ ॥ . इन चारों नदियों के कुंडों की लम्बाई और चौड़ाई में उन्नीस सौ बीस योजन (१६२०) प्रमाण का है । (१२१) एतत्कुण्डान्तर्गताश्च, द्वीपाः प्रोक्ता महर्षिभिः । षट्पचाशे योजनानां द्वे शते विस्तृतायताः ॥१२२॥ इन नदियों के कुण्ड में अर्न्तगत रहे द्वीपों का आयाम और विस्तार दो सौ छप्पन (२५६) योजन का महर्षियों ने कहा है । (१२२) सर्वे कुण्ड गता द्वीपा : क्रोशद्वयोच्छ्रिता इति । तैर्जम्बूद्वीपस्तुल्या उच्छ्रयेण नगां इव ॥ १२३॥ , जम्बू द्वीप के कुण्ड गत द्वीपों के समान इन कुण्डों के द्वीप दो ऊंचाई वाले है और ऊंचाई के कारण पर्वत समान लगते हैं । (१२३) यथेदमर्द्ध व्याख्यातं याम्यं पूर्वापरार्द्धयोः । तथा ज्ञेयमुदीच्यार्द्धमपि मानस्वरूपतः ॥ १२४ ॥ " किन्तूदीच्येषुकाराद्रेः परतः पार्श्वयोर्द्वयोः । स्यादेके के मैरवत क्षेत्रं भरतसन्निभम् ॥१२५॥ इस तरह से पुष्कर द्वीप के दक्षिणार्ध के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध का वर्णन किया है, उसी तरह के मान स्वरूप से पुष्करार्ध के उत्तरार्ध में भी पूर्वार्ध-. पश्चिमार्ध का मान स्वरूप समान ही समझना । परन्तु उत्तर दिशा के इषुकार पर्वत के बाद दोनों तरफ भरतक्षेत्र के समान ही एक-एक ऐरवत क्षेत्र होता है । (१२४-१२५) 12
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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