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तिगिच्छिस्तु योजनानां, सहस्राण्यष्ट विस्तृतः । . सहस्राणि षोडशेष, भवेदायामतः पुनः ॥११४॥
वह तिगिछि सरोवर आठ हजार योजन का विस्तार वाला और सोलह हजार योजन की लम्बाई वाला है । (११४) - एतस्याद्धरिमलिला, शीतोदेति निरीयतुः ।
दक्षिणस्यामुदीच्यां च पर्वतोपर्यम्उभे ॥११५॥ एकोनत्रिंशतं गत्वा, सहस्त्रान् षट्शतानि च । योजनानां सचतुरशीतीन् षोडश ईशकान् ॥११६॥ पततः स्व स्व कुण्डान्तहरिवर्षान्तराध्वना । पूर्वार्द्धाद्धरि सलिला, प्राप्नोति मानुषोत्तरम् ॥११७॥
पश्चिमार्द्ध गता सा तु, कालोदमुपसर्पति । ... सर्वासां दिग्विनिमय, एवं पूर्वापरार्द्धयोः ॥११८॥
इस सरोवर में से दो हरिसलिला और दो शीतोदा नदी निकलती है । उसमें से दो नदियां पर्वत के ऊपर दक्षिण दिशा में और दो उत्तर दिशा में उन्तीस हजार छ: सौ चौरासी योजन और सोलह अंश २६६८४- १६/२१२ जाकर अपने-अपने कुंड में गिरती है. । उसमें पूर्वार्ध की हरिसलिला नदी, हरिवर्ष क्षेत्र के मध्य भाग में होकर मानुषोत्तर पर्वत में मिल जाती है, और पश्चिमार्ध की हरि सलिला नदी कालोदधिं समुद्र में मिलती है । इस तरह पूर्वार्ध और पश्चिमार्क की सारी नदियों की दिशाओं का निश्चय करना । (११५-११८)
पूर्वार्द्ध शीतोदा प्रत्यन्विदेहार्द्धविभेदिनी । कालोदमत्यार्द्धस्था तु, प्राप्नोति मानुषोत्तरम् ॥११६॥
पूर्वार्ध के अन्दर रही शीतोदा नदी पश्चिम महाविदेह को दो विभाग में बटवारा करती कालोदधि समुद्र में मिलती है और पश्चिमार्ध रही शीतोदा नदी मानुषोत्तर पर्वत में समा जाती है । (११६)
एताश्चस्रो विस्तीर्णा, द्वे शते हृदनिगमे । चत्वार्युण्डा योजनानि, प्रान्ते दशगुणस्ततः ॥१२०॥