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________________ (१३२) लक्षाणि षड् योजनानां, पच्चषष्टिं सहस्रकान् । द्वे शते सप्तसप्तत्याऽधिके द्वादश चांशकान् ॥१०८॥ युग्मं ।। - इस महाहिमवंत पर्वत के बाद हरिवर्ष नाम का क्षेत्र शोभायमान है और उसके मध्य में गन्धापाती नाम का वृत्त वैताढय पर्वत शोभता है । इस हरिवर्ष क्षेत्र का प्रारंभ विस्तार छः लाख, पैंसठ हजार दो सौ सत्तत्तर योजन और बारह अंश (६,६५,२७७+ १२/२१२) का होता है । (१०७-१०८) अष्टौ लक्षाः सहस्राणि, षट् पन्चाशच्छत द्वयम् । . सप्तोत्तरं योजनानां मध्येऽशाश्चतुरतम् ॥१०६॥ सहस्त्रैः सप्तचत्वारिंशताढया दशलक्षिकाः । षत्रिंशं च योजनानां शतमंशशतद्वयम् ॥११०॥ अष्टाढयं विस्तीर्णमन्ते, स्वरूपमपरं पुनः । जम्बूद्वीपहरिवर्षवदिहापि विभाव्यताम् ॥१११॥ इसका मध्यम विस्तार आठ लाख छप्पन हजार दो सो सात योजन और आठ अंश (८५६२०७+८/२१२) का है और अन्तिम विस्तार दस लाख सैंतालीस हजार एक सौ सैंतीस योजन और दो सौ आठ अंश (१०४७१३६- २०८/२१२) का होता है। और इसके सिवाय शेष सब उसका स्वरूप जम्बूद्वीप के हरिवर्ष क्षेत्र के अनुसार समझना चाहिए । (१०८-१११) इतः परएच निषधः, पर्वतः सर्वतः स्फुरन् । हृदेनालङ्कृतोमूर्ध्नि, सदब्जेन तिगिन्छना ॥११२॥ इस हरिवर्ष क्षेत्र के बाद निषध नाम का पर्वत आता है जो कि चारों तरफ से शोभायमान है। इस पर्वत के शिखर प्रदेश पर सुन्दर कमलों वाला तिगिंछि नाम का सरोवर शोभता है । (११२) सप्तषष्टिं सहस्राणि, साष्टषष्टि शतत्रयम् । योजनानां लवान् द्वात्रिंशतं स्यादेष विस्तृतः ॥११३॥ इस निषध पर्वत का विस्तार सड़सठ हजार तीन सौ अइसठ योजन. और बत्तीश अंश प्रमाण (६७३६८ ३२/२१२) क होता है । (११३)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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