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________________ ( १३० ) अपने-अपने आगे से आगे क्षेत्रों में से बहती नदी विकटा पाती वृत्त वैताढय से दो योजन दूर रहती है और माल्यवान् पर्वत से उसके आगे के क्षेत्र की नदी चार योजन दूर रहती है । (६४) अस्योत्तरस्यां च महा हिमवान् वर्त्तते गिरिः । लक्षाण्यष्टायतो मौलौ, महापद्म हृदाङ्कितः ॥६५॥ योजनानां सहस्राणि षोडशाष्टौ शतानि च । द्विचत्वारिंशदाढयानि, कलाश्चष्टैष विस्तृतः ॥६६॥ इस हैमवंत क्षेत्र की उत्तर दिशा में महाहिमवान नाम का पर्वत हैं, उसकी लम्बाई आठ लाख योजन की है और उसके शिखर पर महापद्म नाम का सरोबर रहा है । इस महाहिमवान गिरि का विस्तार सोलह हजार आठ सौ बयालीस (१६८४२) योजन और आठ कला का है । (६५-६६) महापद्महृदस्त्वष्टौ, सहस्त्राण्यायतो भवेत् । योजनानां सहस्राणि चत्वारि चैंष विस्तृतः ॥६७॥ " · इस पर्वत के शिखर के ऊपर रहे इस महापद्म सरोवर की लम्बाई आठ हज़ार योजन और विस्तार में चार हजार योजन है । (६७) दक्षिणस्यामुदीच्यां न नद्यौ द्वे निर्गते इतः । रोहिता हरिकान्ता च ते उभे पर्वतोपरि ॥६८॥ चतुःषष्टि शतान्येकविंशान्यंशचतुष्टयम् । अतीत्य स्वस्वकुण्डान्तर्निपत्य निर्गते ततः ॥६६॥ • पूर्वार्द्धाद् हैमवतगा नराद्रिं याति रोहिता । अपरार्द्धात्तु सा याति, कालोदनाम वारिधम् ॥ १०० ॥ x इस सरोवर में दक्षिण दिशा में रोहिता नाम की और उत्तर दिशा में हरिकान्ता नाम की एक-एक नदी निकलती है । इन दोनों नदियों के पर्वत के ऊपर छ: हजार चार सौ इक्कीस योजन (६४२१) और ४ कला जाने के बाद अपने-अपने कुंड में गिरती है, फिर वहां से निकलकर पूर्वार्ध के हैमवत क्षेत्र में रही रोहिता नदी मानुषोत्तर पर्वत में जाती है और पश्चिमार्ध के हैमवंत में रही रोहिता नदी कालोदधि समुद्र में जाकर मिलती है । (६८ - १००)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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