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एकादश योजनानां शतान् पन्चसमन्वितान् । अंशान् द्वाविंशतिं गत्वा, कुण्डं प्राप्याथ पूर्ववत् ।।८२॥ क्षेत्रं हेमवतं द्वेधा, स्वप्रवाहेण कुर्वती । कालोदं याति पूर्वार्द्ध, परार्द्धमानुषोत्तरम् ॥८३॥
हिमवान् पर्वत के ऊपर रोहितांशा नदी निकलने के स्थान में पचास. योजन विस्तारवाली है तथा एक योजन गहरी है । यह नदी हिमवान पर्वत पर उत्तर दिशा में ग्यारह सौ पांच योजन और बाईस अंश (११०५-२२) क्षेत्र आगे बढकर, पूर्व के समान कुंड में गिरकर हैमवत् क्षेत्र को अपने प्रवाह से दो विभाग करके वह पूर्वार्ध की कालोदधि समुद्र में मिलती है । और पश्चिमार्ध की नदी मानुषोत्तर पर्वत में जाकर विलय होती है । (८१-८३)
अस्याः कुण्डं योजनानामशीत्याढया चतुःशती। विष्कम्भायामतो मूल प्रवाहवच्च जिह्विका ॥४॥
इन रोहितांशा नदियों के कुंड चार सौ अस्सी (४८०) योजन लम्बे चौड़े है तथा उसकी जिह्विका मूल प्रवाह समान है । (८४)
अस्याः कुण्डान्तर्गतश्च, द्वीपो भवति यः स तुः । चतुःषष्टिर्योजनानि, विषकम्मायामतो मतः ॥८५॥
इन रोहितांशा नदियों के कुंडों के अर्न्तगत रहे द्वीप चौसठ (६४) योजन लम्बे चौड़े है । (८५)
रूप्यकूले स्वर्णकूले, रोहिते रोहिताशिके । अष्टाप्योतास्तुल्य रूपाः, स्वरूप परिवारतः ॥८६॥ .
दो रूप्य कूला, दो स्वर्ण कूला, दो रोहिता और दो रोहितांशा ये आठो नदियां स्वरूप में और परिवार में समान है । (८६)
अथोत्तरं हिमवतः क्षेत्रं हैमवतं स्थितम् । .. वृत वैताढयेन शब्दापातिनाऽङ्कृतान्तरम् ॥८७॥
अब हिमवान पर्वत से आगे हैमवत क्षेत्र रहा है, उसके मध्य में शब्दःपाती नाम का वृत्त वैताढय पर्वत शोभता है । (८७)