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पश्चिमार्धात्पुनर्गङ्गा, याति कालोदवारिधौ । सिन्धुनरोत्तरनगपादमूले विलीयते ॥७६ ॥
पश्चिमार्ध की गंगा नदी कालोदधि समुद्र को मिलती है, जबकि वहां भी सिन्धु नदी मानुषोत्तर पर्वत के मूल में विलीन हो जाती है । । ... एवं नरोत्तरनागभिमुखाः सरितोऽखिलाः ।
विलीयन्त इह ततः परं तासामभावतः ॥७७॥
इस तरह मानुषोत्तर पर्वत तरफ की सर्व नदियां मानुषोत्तर पर्वत के पास में ही विलय हो जाती है । क्योंकि आगे मनुष्य क्षेत्र के बाहर नदियां नहीं होती है । (७७)
गंगा सिन्धु प्रपाताख्ये, कुण्डे विष्कम्भ तो मते ।
चत्वारिंशत्समधिकं, योजनानां शतद्वयम ॥७८॥
गंगा और सिन्धु नदी को गिरने के दो कुंड-गंगा प्रपात कुंड और सिन्धु प्रपात कुंड है, इन दोनों कुंडों का विस्तार दो सौ चालीस योजन से कुछ अधिक है । (७८)
तदन्सर्वर्तिनौ द्वीपौ, प्रज्ञप्तौ विस्तृता यतौ ।
द्वात्रिंशद्योजनी मूल प्रवाह इव जिबिके ॥६॥ ... इन कुंडों में एक-एक द्वीप आया है, वह बत्तीस योजन की लम्बाई वाला,
और चौड़ाई वाला है और उसकी जिहिका प्रारंभ के प्रवाह का पच्चीस योजन विस्तार वाली है । (७६)
गंगा सिन्धु रक्तवती रक्ता स्वेतन्निरूपणम् । . षट्त्रिंशशतसङ्ख्यासु, सर्वमप्यविशेषितम् ॥८०॥ _____ गंगा और सिन्धु (३४+३४ = ६८) अड़सठ तथा रक्तवती और रक्ता (३४+३४ = ६८) अड़सठ, इस तरह कुल मिलाकर एक सौ छत्तीस नदियों का सारा वर्णन समान समझना । (८०)
रोहितांशा योजनानि पन्चाशन्नदनिर्गमे । विस्तीर्णैक योजनं चोद्विद्धोदीच्यां नगोपरि ॥१॥