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..कालोदस्यान्त्यपरिधिर्यः पूर्वमिहदर्शितः ।
स एव पुष्करार्द्धस्य, भवेत्परिधिरान्तरः ॥४७॥
कालोदधि समुद्र की जो बाह्य परिधि पहले बता गये है वही पुष्करा की अभ्यन्तर परिधि जानना । (४७)
द्विधेदमिषुकाराभ्यां घातकी खण्ड वत्कृतम् । अभ्यन्तरे पुष्कराः तस्थितद्भयामपागुदक् ॥४८॥
अभ्यन्तर पुष्करार्ध में रहे दो इषुकार पर्वत द्वारा पुष्कराई क्षेत्र भी धातकी . खंड के समान उत्तर दक्षिण दो भाग में बंटवारा हुआ है । (४८)
धातकी खण्डेषुकारसधर्माणाविमावपि । चतुष्कूटावन्त्यकूट स्थितोत्तुङ्ग जिनालयौ ॥४६॥
धातकी खंड के इषुकार पर्वत के समान ये पुष्कराध के दो इषुकार पर्वत ऊपर भी चार शिखर है और उन दोनों के अन्त्य शिखर पर उत्तुंग जिनालय है । (४६)
एके नान्तेन कालोदं, परेण मानुषोत्तरम् । . स्पृष्टवन्तौ योजनाना, लक्षाण्यष्टयताविति ॥५०॥
इन दोनों इषुकार पर्वत के एक किनारा अन्तिम भाग कालोदधि समुद्र को .. और दूसस किनारा अन्तिम विभाग मानुषोत्तर पर्वत को स्पर्श करता है । और इन दोनों पर्वतों की लम्बाई आठ लाख योजन की है । (५०)
एवमभ्यंतरं पुष्करार्द्ध निर्दिश्यन्ते द्विधा । .... पूर्वार्द्धं पश्चिमार्द्ध च, प्रत्येकं मेरूणाऽन्चितम् ॥५१॥
इसी तरह से अभ्यन्तर पुष्करार्ध क्षेत्र, पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध इस तरह दो प्रकार से है । इन दोनों में एक-एक मेरूपर्वत है । (५१)
पूर्वार्द्ध परार्द्धयोरत्र, कालोदवेदीकान्ततः । पुरतः पुनरर्वाक् च, मानुषोत्तरपर्वतात् ॥५२॥ सहस्रान्नवनवति, प्रत्येकं लक्षक त्रयम् । योजनानामतीत्यासित, कुण्डमेकैकमद्धृतम् ॥५३॥