________________
(१२०)
एतावन्ति योजनानि, दृष्टानि जिन नायकैः । मानुषोत्र शैलस्य, बाह्यस्य परिधेर्मितौ ॥४२॥.
एक करोड़ बयालीस लाख छत्तीस हजार सात सौ तेरह (१४२३६७१३) योजन प्रमाण मानुषोत्तर पर्वत की बाह्य परिधि श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है । (४१-४२)
इति बृहत्क्षेत्र समास वृत्यभिप्रायेण, जीवाभिगम सूत्रे ‘सत्त.चौद्द सुत्तरे जोअ णसए' इत्युक्तं ।'
यह बात बहत्क्षेत्र समास की टीका के आधार पर जानना, परन्तु जीवाभिगम सूत्र में तो सात सौ तेरह (७१३) के स्थान पर सात सौ चौदह योजन कहा है कुछ अधिक योजन का विभाग को व्यवहार से योजन ही कहा जाता हैं । इसलिए चौदह योजन अधिक कहा है।
द्विचत्वारिंशता लक्षरेक कोटि समन्विता । .. त्रिंशत्सहस्राश्चैकोनपन्चाशा द्विशती तथा ॥४३॥ मानुषोत्तरशैलस्यैतावान् परिधिरान्तरः । एष एवाभ्यन्तरस्य, पुष्करार्द्धस्य चान्तिमः ॥४४॥
एक करोड़ बयालीस लाख, तीस हजार दो सौ उन्चास (१४२३०२४६) योजन मानुषोत्तर पर्वत की अभ्यन्तर परिधि है और यही अभ्यन्तर पुष्करार्ध की अन्तिम परिधि जानना । (४३-४४)
नृक्षेत्रस्यापि परिधिरेष एवावसानिकः । अथास्य पुष्करार्द्धस्यमध्यमः परिधिस्तवयम् ॥४५॥ एका कोटी योजनानां, लक्षाः सप्तदशोपरि। .. सप्तविंशत्यन्वितानि, चत्वार्येव शतानि च ॥४६॥
और मनुष्य क्षेत्र की अंतिम परिधि भी इसी तरह इतनी ही जानमा । अब पुष्कराध की मध्यम परिधि कहते हैं । वह एक करोड़, सत्रह लाख चार सौ सत्ताईस (११७००४२७) योजन की जानना । (४५-४६) .