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तथाहुर्ज्ञान चन्दन मलय गिरयो मलय गिरयः " अयं च मानुषोत्तर पर्वतो बाह्य पुष्करवरार्द्ध भूमौ प्रतिपत्तव्य" इति बृहत्क्षेत्र समास वृत्तौ ॥
ज्ञान रूपी चन्दन के लिए मलय पर्वत सद्दश पूज्य श्री मलयगिरि जी महाराज कहते है कि ‘यह मानुषोत्तर पर्वत बाह्य पुष्करार्ध भूमि में जानना । इस तरह से बृहत्क्षेत्र समास की टीका में कहा है ।
कोटिरेका द्विचत्वारिंशल्लक्षाणि सहस्रकाः ।
चतुस्त्रिंशत्छतान्यष्टौ त्रयोविंशानि चोपरि ॥३६॥
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एतावद्यो जनमितो, मानुषोत्तर भूभृतः । स्यान्मध्ये परिधिर्मौलौ, त्वस्यायं परिधिर्भवेत् ॥३७॥
कोटीरेकाऽथ लक्षाणि द्वि चत्वारिंशदेव च ।
द्वात्रिंशच्च सहस्त्राणि, द्वात्रिंशाष्च शता नव ॥३८॥
एक करोड़ बयालीस लाख, चौंतीस हजार आठ सौ तेईस (१,४२,३४,८२३)
योजन प्रमाण रूप मानुषोत्तर पर्वत की मध्य परिधि है और शिखर के ऊपर की परिधि एक करोड़ बयालीस लाख बत्तीस हजार नौ सौ बत्तीस (१,४२,३२,६३२) योजन कीं जानना । (३६-३८)
पृथुगुक्तो परिक्षेपौ, यौ मध्येऽस्य तथोपरि । बहिर्भागापेक्षया तौ, पार्श्वेऽस्याभ्यन्तरे पुनः ॥३६॥
समानभित्तिकतया, मूले मध्ये तथोपरि । तुल्य एव परिक्षेपः सर्वत्राप्यवसीयताम् ॥४०॥
इस मानुषोत्तर पर्वत की मध्यभाग तथा शिखर की परिधि जो भिन्न प्रकार कही है वह बाहर के भाग की अपेक्षा से जानना, परन्तु अन्दर के भाग में तो समान दीवार होने के कारण मूल, मध्य और ऊपर इस तरह तीनों स्थान की समान परिधि होती है । (३६-४०)
एक कोटी द्विचत्वारिंशल्लक्षाणि सहस्रकाः । षट्त्रिंशच्च शताः सप्त, त्रयोदश समन्विताः ॥४१॥