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________________ (११६) ईशान कोन में सर्वरत्न नाम का शिखर है, वहां सुपर्णकुमार का इन्द्र है जो गरूड कुमार का दूसरा इन्द्र है जो वेणु दालि है, उसका स्थान है । (२३) .. तथाऽपरोत्तरस्यां स्यात्तद्रलसंचयाभिधम् । प्रभज्जनपराख्यं च, प्रभजन सुरेशितुः ॥२४॥ तथा वायव्य कोने में रत्न संचय नामक शिखर है, इसका दूसरा नाम प्रभंजन भी है, वह प्रभंजन नाम का इन्द्र-वायुकुमार का दूसरा इन्द्र है. उसका निवास स्थान है । (२४) __अत्र यद्यपि रत्नादीनि चत्वारि कूटानि स्थानाङ्ग सूत्रे चतुर्दिश मुक्तानि तथाहि - "माणु सुत्ररस्सणं पव्वयस्स चउ दिशिं चत्तारि कुडापं० त० स्यणेरयणुच्चये सव्व रयणे रयण संचए ॥" इति तथाप्येतत्सूत्रं श्री अभयदेव सूरिभिरेवं व्याख्यातं - तथाहि - "इह च दिगग्रहणेऽपि विदिक्ष्विति द्रष्टव्यं, तथा एवं चैत द्वया ख्यायते द्वीप सागर प्रज्ञप्ति संग्रहण्यनुसारेणे' इत्यादि ॥ . यहां यद्यपि ये रत्ना आदि चार शिखर स्थानांग सूत्र में चार दिशाओं में कहा है । वह इस तरह है - "मानुषोत्तर पर्वत ऊपर चार दिशा में रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न और रत्न संचय नाम के शिखर है" फिर भी इस सूत्र में श्री अभयदेव सूरीश्वर जी महाराज ने इस सूत्र की इस तरह व्याख्या की है -- 'यहां दिशा शब्द के ग्रहण से भी विदिशा में ही है' - इस तरह समझना चाहिए । क्योंकि द्वीप सागर प्रज्ञप्ति तथा संग्रहणी आदि में इसी तरह व्याख्या मिलती है ।". चतु दिशमिहैकैक्रः, कूटे भाति जिनालयः । ... दिशां चतसृणां रत्नकिरीट इव भासुरः ॥२५॥ चारों दिशा में एक-एक शिखर पर एक-एक जिनालय है ये चारों दिशाओं के देदीप्यमान रत्न मुगर के समान शोभायमान होते हैं। (२५) तथोक्तं चिरंजय क्षेत्र समास सूत्रे: -. "चउ सुवि उसुयारेसुं इक्कि वक्कं नरनगंमि चत्तारि। . कूडो वरि जिण भवणा कुलगिरि जिण भवण परिमाणा ॥२६॥" यह बात लघु क्षेत्र समान सूत्र में कही है कि - 'चारो इषुकार पर्वत ऊपर
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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