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(१०६) इस समुद्र की बाहर की परिधि इकानवे लाख सत्तर हजार छ: सौ पांच (६१७०६०५) योजन की है और पूर्वादि चारों दिशा के अन्दर जम्बूद्वीप के वर्णन जैसा कहा उसी तरह स्वरूप वाला ही विजयादि चार द्वार से यह समुद्र शोभायमान है । (२८६) ।
लक्षा द्वाविंशतिश्चद्विनवतिरूपरि स्युः सहस्राणि नूनं, षट्चत्वारिंशदाढया जिनपति गदिता षट्शती योजनानाम् । पादोनं योजनं चान्तरमिह निखिलद्वार्षु तुल्यप्रमाणं, कालोदे द्वारपानं विजयवदुदिता राजधान्योऽपरस्मिन् ॥२८७॥
___ (स्रग्धरा) .इस समुद्र के चारों द्वारों का परस्पर अन्तर (दूरी) बाईस लाख बयानवे हजार छ: सौ छियालिस (२२६२६४६) योजन में एक कोस कम है और चारों द्वारों के अधिष्टायक देवों की राजधानी उस दिशा में अन्य कालोदधि समुद्र में है और उनकी ऋद्धि सिद्धि आदि विजयदेव के समान जानना (२८७)
प्राक्प्रतीच्योर्दिादश द्वादश, द्वादशेभ्यः सहस्रेभ्य एवान्तरे । ..., सन्तिकालोदधौ धातकीखण्डतोऽत्रा,न्तरीपाअमुष्यामृतोष्णत्विषाम्॥२८८॥
(मौक्तिकदाम् ) धात की खंड से पूर्व और पश्चिम दिशा में बारह, बारह हजार योजन के अन्तर (दूरी) पर कालोदधि समुद्र में धातकी खंड सम्बन्धी बारह सूर्य और बारह चन्द्रमा अंतर द्वीप होते है । (२८८)
पुष्करद्वीपतोऽप्येवमत्राम्बुधौ, तावता प्राक्प्रतीच्यो:सुधोष्णत्विषाम्। . नेत्रवेदैर्मिता नेत्रवेदैर्मिता(४२), एतदब्धिस्पृशामन्तरीपा:स्थिताः ।।२८६॥
(मौक्तिकदाम) इसी तरह पुष्कर द्वीप से भी पूर्व और पश्चिम दिशा में बारह-बारह हजार योजन जाने के बाद कालोदधि समुद्र में कालोदधि समुद्र सम्बन्धी बयालीस चन्द्र और बयालीस सूर्यों के अन्तर द्वीप आते हैं । (२८६)
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