________________
(११०) अन्तरीपा अमी गौतमद्वीपवद्भावनीयाः स्वरूपप्रमाणादिभिः । वेदिकाकाननालड्कृताःसर्वतः, क्रोशयुग्मोच्छ्रिता वारिधेर्वारितः ॥२६॥
___(मौक्तिकदाम) इन सब अन्तर द्वीपों को स्वरूप और प्रमाण से गौतम द्वीप समान ही जानना । इन सब अन्तर द्वीपों के चारों तरफ वेदिका और वन से अलंकृत है और समुद्र के पानी से दो कोस ऊंचे हैं । (२६०)
अथाम्भोधावस्मिन्नमृतरूचयस्तिग्मकिरणा, द्विचत्वारिंशत्स्युर्गह सहस्रत्रयमथ । शतैः षड्भिर्युक्तं षडधिकनवत्या समधिकैः, सहस्त्रं षट् सप्तत्याधिक शतयुक् चात्र भगणः ॥२६॥
___ (शिखरिणी) पंचाशदूनानियतं सहस्त्रास्त्रयोदशैभाक्षि मिताश्च लक्षाः । स्युस्तारकाणामिहकोटाकोटयः कालोदधौ तीर्थकरोपदिष्टाः ॥२६२॥ .
. (उपजातिः) इस कालोदधि समुद्र में सूर्य बयालीस है और चन्द्र भी बयालीस है, ग्रह तीन हजार छ: सौ छियानवें (३६६६) है नक्षत्र की संख्या ग्यारह सौ छिहत्तर (११७६) है तथा अट्ठाईस लाख, बारह हजार नौ सौ पचास (२८,१२,६५०) कोडा कोडी प्रमाण तारा समूह है। इस तरह श्री तीर्थंकर परमात्मा ने कहा है। (२६१-२६२)
विश्वाश्चर्यद कीर्ति कीर्ति विजय श्री वाचकेन्द्रान्तिषद्राज श्री तनयो ऽतनिष्ट विनयः श्री तेजपालात्मजः। काव्यं यत्किल तत्र निश्चित जगत्तत्व प्रदीपोपमे,
द्वाविंशो मधुरः समाप्ति मगत्सर्गो निसर्गो ज्जवलः ॥३६३॥ ॥ इति श्री लोक प्रकाशे धातकी वर्णको द्वाविंशति तमः सर्गः समाप्तः ॥
॥ग्रन्थाग्रं ३१४॥