________________
(१०७) इस धातकी खण्ड में उत्कृष्ट से निधान की संख्या छ: सौ बारह होती है उपयोग में तो उत्कृष्ट से पांच सौ चालीस आती है और जघन्य से तो बहत्तर उपयोग में आते है । (२७८)
विंशानि चत्वारि शतानि प-चै काक्षाणि रत्नानि पृथग्भवेयुः । उत्कर्ष तस्तानि जघन्यतश्च, पन्चाशदाढया ननु षड्भिरेव ॥२७६ ॥
(इन्द्रवज्रा) तथा चक्रवर्ती के एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय रत्न उत्कृष्ट से चार सौ बीस (४२०) होते है, इससे कुल आठ सौ चालीस रत्न होते है और जघन्य से एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय रत्न छप्पन होते है । (२७६)
द्वादशोण्णमहंसः सुधांशवो, द्वादश ग्रह सहस्रमन्वितम् । षड्युतार्द्ध शतकेन भानि षट्त्रिंशता समधिकं शतत्रयम् ॥२८०॥
.. (रथोद्धता) त्रिभिः सहस्त्रैरधिकानि लक्षाण्यष्टौ तथा सप्त शतानि चात्र । .: स्युःकोटि कोटयः किलतारकाणां,तमोऽङ्गरोन्मूलनकारकाणाम् ॥२०१॥ .. . (उपजातिः)
इस धांतकी खंड के अन्दर बारह सूर्य और बारह चन्द्र होते हैं। एक हजार और छप्पन ग्रह होते हैं । तीन सौ और छत्तीस नक्षत्र है और आठ लाख, तीन हजार सात सौ (८०३७००) कोडा कोडी तारा समुदाय होता है जोकि अन्धकार का उन्मूलन करता है । (२८०-२८१)
द्वीपोऽयमेवं गदितस्वरूपः कालोदनाम्नोदधिना परीतः । विभाति दीप्रप्रधिनेव चक्रमिवेभसेनावलयेन भूपः ॥३८२॥
(उपजातिः) .... यह जिसका वर्णन किया है वह इस धातकी खंड द्वीप के चारों तरफ . कालोदधिनाम समुद्र से लिप्त हुआ है वह देदीप्यमान नाभि से जैसे चक्र शोभता है
और हाथी की सेना से जैसे राजा शोभता है, वैसे वह शोभ रहा है । (२८२)