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________________ (१०६) - ये सब पर्वत, सरोवर, कूट, कुंड और नदियां, वेदिका और वन से युक्त है तथा वेदिका और वन का स्वरूप जम्बूद्वीप के समान समझना । (२७२) एषां याम्योदीच्यवर्षसरिच्छैलादिवर्तिनाम् । विजयस्वर्गिवत् प्रौढसमृद्धीनां सुधा भुजाम् ॥२७३॥ दक्षिण स्यामुदीच्यां च जम्बू द्वीपस्थ मेरूतः । अन्यस्मिन्धातकीखण्डे, राजधान्यो जिनैः स्मृताः ॥२७४॥ .... दक्षिण और उत्तर दिशा के क्षेत्र नदियां, पर्वत में रहने वाले जो भी देव है वे विजयदेव के समान समृद्धिशाली है उनकी राजधानी जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत से दक्षिण और उत्तर में अन्य धातकी खंड के अन्दर होती है इस प्रकार श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है । (२७३-२७४) श्रेण्यश्चतस्रः प्रत्येक वैताढयेष्विति मीलिताः। ... श्रेण्यो भवन्ति द्वीपेऽस्मिन्, द्विशती सद्विसप्ततिः ॥२७५॥ प्रत्येक वैताढय पर्वतों के ऊपर चार-चार श्रेणियां है, वे सब मिलाकर ६८४४ = २७२ दो सौ बहत्तर श्रेणियां होती है । (२७५) दशोत्तरं पुरः शतं प्रति वैताढयमित्यतः । तेषां सहस्राः सप्त स्यु साशीतिश्च चतुः शती ॥२७६ ॥ प्रत्येक वैताढय पर्वत पर एक सौ दस नगर है, इससे सर्व नगरों की संख्या (६८४११० = ७४८०) सात हजार चार सौ अस्सी होती है । (२७६) जघन्यतोऽष्टेह जिना भवेयुरूत्कर्षतस्ते पुनरष्टषष्टिः । जघन्यतः केशवचक्रिरामा, अष्टावयोत्कृष्टपदेतु षष्टि ॥२७७॥ (उपजातिः) धातकी खंड में जघन्य से आठ और उत्कृष्ट अड़सठ (६८) श्री तीर्थंकर परमात्मा होते हैं और जघन्य से बलदेव वासुदेव और चक्रवर्ती आठ होते है और उत्कृष्ट से साठ होते हैं। (२७७) सद्वादशास्युर्निधयोऽत्र षट्शती, प्रकर्षतस्तान्युपभोगभाज्जि तु । द्विविंशतिः पन्चशतानि च ध्रुवं, द्वासप्ततिस्तानि जघन्यतस्तथा ॥२७॥ (इन्द्रवंशा)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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