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धातकी आदि चार महावृक्षों के आठ-आठ दो भद्रसाल वन के आठआठ (८×८ =३२, ८×२ = १६ = ४८ ) इस तरह अड़तालीस भूकट होते हैं उसमें अड़सठ (६८) वृषभकूट मिलाने से कुल मिलाकर एक सौ सोलह भूकूट (जमीन पर कूट) शिखर होते हैं । (२६६)
एतेषां वक्तुमुचिते, पर्वतत्वेऽपि वस्तुत: ।
कूटत्व व्यवहारस्तु, पूर्वाचार्यानुरोधतः ॥ २६७॥
इन सभी को वास्तविक में पर्वत कहना उचित है, फिर भी पूर्वाचार्यों ने
वचन के अनुसार यहां कूट रूप में व्यवहार किया है । (२६७)
महारूद्रा द्वादशैव, विंशतिश्च कुरुहृदाः ।
श्री ही धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मीनां च द्वयं द्वयम् ॥२६८ ॥
श्री, ह्रीं, धृति, कीर्ति, लक्ष्मी देवियों के दो दो सरोवर होने से पद्म सरोवर आदि बारह महासरोवर है । और बीस कुरुक्षेत्र के सरोवर है । (२६८)
सहस्त्रा द्वादशैकोन त्रिंशल्लक्षाश्च कीर्तिताः ।
तरङ्गिणीनामेतस्मिन् द्वीपे मतान्तरे पुनः ॥ २६६ ॥
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पन्चत्रिंशल्लक्षाणि चतुरशीतिः सहस्रकाश्चैव ।
इह संभवन्ति सरितां तत्वं तु विदन्ति तत्वज्ञाः ॥ २७० ॥ आर्या ।
इस धात की खण्ड के अन्दर उन्तीस लाख बारह हजार (२६१२०००) नदियां है और मतान्तर में पैंतीस लाख चौरासी हजार (३५८४०००) नदियां है इसमें वास्तविक में क्या है वह तत्वज्ञ पुरुष जाने । (२६६-२७०)
विदेह युग्मे प्रत्येकं स्युः कुण्डान्यष्ट सप्ततिः ।
द्वे द्वे च शेषवर्षेषु शतमेवमशीतियुक् ॥ २७१ ॥
इसा की खंड के प्रत्येक विदेह क्षेत्र के अन्दर अठहत्तर, अठहत्तर (७८) कुंड होते हैं, और शेष बारह क्षेत्रों में दो दो कुंड होते हैं । इससे कुल ७८+७८+२४ = १८० एक सौ अस्सी कुंड होते हैं । (२७१)
एतेऽद्रयो हृदाः कूटाः, कुण्डान्येतान्यथापगाः । स्युर्वेदिकावनोपेतास्तत्स्वरूपं तु पूर्ववत् ॥२७२॥