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दो लघु हिमवंत पर्वत और दो शिखरी पर्वत के ११, ११ शिखर है और ३२ वक्षस्कार पर्वत के चार-चार शिखर से युक्त है । (२६०)
त्रयः शताः स्युर्दा विंशाः, कूटान्ये तानि तत्र च । षोडशा त्रिशती प्रोक्तहिमवगिरि कूटवत् ॥२६१॥ .
इसी तरह कुल मिलाकर तीन सौ बाईस (३२२) शिखर होते है, उसमें से तीन सौ सोलह (३१६) शिखर जम्बूद्वीप के हिमवंत पर्वत के शिखर समान ही है। (२६१)
हरिकूटौ द्वयोर्विद्युत्प्रभयो यौहरिस्सहौ. । माल्यवतोर्बलकूटो, मेरूनन्द योश्च यौ ॥२६२।। एते षडपि साहस्राधानामिति मानतः । चतुस्त्रिंशाद्रि कूटानामेवं नवशती भवेत् ॥२६३॥ दो विद्युत्प्रभ पर्वत के दो हरिकूट, दो माल्यवान् पर्वत के दो हरिस्सहकूट और दो मेरू पर्वत के नन्दनवन के दो बलकूट इस प्रकार से इन कुछ कूट-शिखरों की एक हजार योजन की लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई है । और इस तरह पर्वत के शिखर की संख्या कुल मिलाकर नौ सौ चौंतीस (६३४) होते है । (२६२-२६३)
सहे षुकारकूटै द्वर्चित्वारिं शा शता नव' । तत्रेषुकारकूटानां, मानं तु नोपलभ्यते ॥२६४ ॥
दो इषुकार पर्वत के शिखर को एकत्रित करते कुल शिखरों की संख्या नौ सौ बयालिस (६४२) की होती है । इसमें इषुकार पर्वत के शिखर का माप नहीं मिलता है । (२६४)
चतुःषष्टौ विजयेषु भरतैरवतेषु च । स्युरष्टषष्टिवृषभकूटा एकै क भावतः ॥२६५॥
चौंसठ विजयों में और दो भरत और दो ऐरवत क्षेत्रों में एक-एक इस तरह अड़सठ (६८) वृषभ कूट-शिखर होते है । (२६५)
धातक्यादिषु चतुष्के, द्वयोश्च भद्रसालयोः । अष्टाष्टेति च सर्वाग्रे भू कूटाः षोडशं शतम् ॥२६६॥