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इस धात की खंड के अन्दर १२ वर्षधर पर्वत है, ६८ दीर्घ वैताढय पर्वत ८ वृत्त वैताढय पर्वत, ४०० कांचन गिरि, ३२ वक्षस्कार पर्वत, ८ गजदंत पर्वत २. चित्र पर्वत, २ विचित्र पर्वत, ४ यमक पर्वत, २ इषुकार पर्वत और २ मेरूपर्वत है इस तरह सर्व पर्वतो का कुल जोड़ पांच सौ चालीस (५४०) पर्वत है और चार महावृक्षक होते है । (२५३-२५५)
चतुर्दशात्र वर्षाणि, चतस्रः कुरवोऽपि च । ___षट् कर्मभूमयोऽकर्म भूमयो द्वादश स्मताः ॥२५६॥
इस धातकी खण्ड में १४ क्षेत्र है ४ कुरु क्षेत्र है छह कर्म भूमियां है और बारह अकर्म भूमियां है । (२५६)
दीर्घ वैताढवेषु कूटाः प्राग्वन्नव नवोदिताः ।
सक्रोश षड् योजनोच्चा, द्वादशा षट् शतीति ते ॥२५७॥ . .... यहां रहे अड़सठ दीर्ध वैताढय पर्वत पर जम्बू द्वीप के समान ही नौ-नौ
कूट (शिखर) कहे है, और ये कूट सवा छ: योजन ऊंचे है और वे कुल मिलाकर ६८४६ = ६१२ कुट होते है । (२५७.) - रूक्मि महाहिमवन्तः, कूटैरष्टभिरष्टभिः ।
सप्तभिश्च सौमनसौ, तथा च गन्धमादनौ ॥२५८॥ .. दो रूक्मि पर्वत और दो महाहिमवंत पर्वत आठ-आठ कूटो-शिखरों से · युक्त है । दो सौमनस और दो गन्धमादन पर्वत सात-सात शिखर से युक्त है । (२५८)
- मेवों ? नन्दनवने, निषधौ नीलवगिरी । _ विद्युत्प्रभौ माल्यवन्तौ, नव कूटाः समेऽप्यमी ॥२५६॥ ..
दो मेरूपर्वत, दो नन्दनवन, दो निषध पर्वत, दो नीलवंत पर्वत दो विद्युत्प्रभ पर्वत, दो माल्यवंत पर्वत, इन सब के ऊपर नौ-नौ शिखर है । (२५६)
हिमवन्तौ शिखरिणौ, तैरेकादशभिर्युतौ । वक्षस्कार गिरिणां च, प्रत्येकं तच्चतुष्टयम् ॥२६०॥