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________________ (६८) इस तरह की लम्बाई चौड़ाई वाला यह भद्रवन, चार गज दंत पर्वत, एक मेरूपर्वत और दो नदियों से आठ विभाग में बांटा हुआ है । (२२५) तच्च जम्बू द्वीप भद्रसालवद्भाव्यतां बुधैः । तथैतद्वक्ष्यमाणवनकू टादिक स्थितिः ॥ २२६॥ और वह भद्रशालवन जम्बूद्वीप के भद्रशाल समान प्राज्ञपुरुषों ने कहा है, तथा आगे कहा जायेगा वह वन कूटादि की स्थिति भी जम्बू द्वीप के वे वनकूटानि समान ही जानना । (२२६) अथोत्क्रम्य योजनानां शतानि पन्च भूतलात् । कटयां नन्दनवन्मेरो राजते नन्दनं वनम् ॥२२७॥ अब पृथ्वी तल से पांच सौ योजन ऊपर जाने के बाद उस मेरू पर्वत के कमर पर रहे पुत्र के समान नदनवन शोभता है । (२२७) तच्च चक्रवाल तया, शतानि पन्च विस्तृत् । अनल्पकल्प फल दलतामण्डपमण्डितम् ॥ २२८ ॥ यह नंदन वन चक्राकार में पांच सौ योजन विस्तार वाला है और विशाल कल्प वृक्ष के फलों को देने वाले लता मंडप से मनोहर है । (२२८) बहिर्विष्कम्भोऽत्र मरोरुक्ताम्नायेन लभ्यते । योजनानां सहस्राणि, नवसार्द्धं शतत्रयम् ॥२२६॥ तथाहि - उत्क्रान्ताया: पन्चशत्या, दशभिर्भजने सति । लब्धपन्चाशतोऽधःस्थव्यासात्यागे भवेदयम् ॥ २३० ॥ यहां मेरू पर्वत के बाहर के विस्तार युक्त आम्राय द्वारा नौ हजार तीन सौ पचास (६३५०) योजन का है । वह इस तरह से ऊपर पांच सौ योजन जाने के बाद, उस पांच सौ की संख्या को दस से भाग देने पर पचास योजन आते, उसे नीचे के मूल विस्तार के नौ हजार चार सौ (६४००) योजन में से निकाल देने पर नौ हजार तीन सौ पचास (६३५०) योजन की संख्या आती है । (२२६-२३० ). बहिर्व्यासात्पन्चत्यास्त्यागे चोभयतः पृथक् । अन्तर्व्यासोऽष्टौ सहस्त्रास्त्रि शत्या सार्द्धयाधिकाः ॥२३१॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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