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________________ (६४) . पश्चिमा धातकी खंड के उत्तर कुरु में भी धातकी वृक्ष समान जो महाधातकी नाम का वृक्ष है उसका अधिष्ठायक देव प्रियदर्शन है । (२०४) . उत्तरासां कुरुणां यत्स्वरूपमिह वर्णितम् । तदेव देव कुरुषु, विज्ञेयमर्द्धयोर्द्धयोः ॥२०५॥ . किंत्वासु नीलवत्स्थाने, वक्तव्यो निषधाचलः । गिरी चित्र विचित्राख्यौ, वाच्यौ च यमकास्पदे ॥२०६॥ पूर्व और पश्चिम धातकी खण्ड में रहा उत्तर कुरु समान ही पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्ध में देव कुरु क्षेत्र है, परन्तु यहां (उत्तर कुरु में) नीलवंत पर्वत के स्थान पर निषध नाम का पर्वत है तथा यमक पर्वत के स्थान पर वहां चित्र, विचित्र नाम के पर्वत जानना । (२०५-२०६) पर्वा परार्द्धयो देवकुरुषुस्तौ थयाऽऽस्पदम् । प्राग्वच्छाल्मलिनौ वेणुदेवाभिधसुराश्रयौ ॥२०७॥ पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्ध के देव कुरु में यथा स्थान पर धातकी महाधातकी वृक्ष के स्थान के समान ही दो शाल्मली वृक्ष है और उसके अधिष्ठायक वेणु देव नामक देवता है । (२०७) तथोक्तं स्थानाङ्ग द्वितीय स्थानक वृत्तौ - "दो देव कुरु महादुमत्ति द्वौ कूट शाल्मलि वृक्षावित्यर्थः द्वौ तद्वासि देवौ वेणुदेवा वित्यर्थः ।" यही बात स्थानांग सूत्र के दूसरे स्थानक की वृत्ति में इस तरह उल्लेख मिलता है - 'देव कुरु के दो महा वृक्ष है' वे कूट शाल्मली नामक है और उनमें रहने वाला देव वेणुदेव नामक है । (शाल्मली और कूट शाल्मली दोनों एक ही शेषं तु हृदनामादि, यदत्र नोपदर्शितम् । . तन्जम्बू द्वीपवद् ज्ञेयं विशेषो पत्रदर्श्यते ॥२८॥ शेष सरोवर के नामादि जो यहां नहीं कहा है, वह जम्बू द्वीप के सद्दश ही जानना, और जो विशेष है वह अब यहां कहते हैं । (२०८)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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