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________________ 8 x x 2 १४ ७ 00 (६३) • ५५२७१ योजन परस्पर अन्तर होता है । निषध या नीलवंत पर्वत से ५५२७१ योजन पर यमक पर्वत यमक पर्वत से ५५२७१ - पहला सरोवर प्रथम सरोवर से ५५२७१ - दूसरा दूसरा- ५५२७१ - तीसरा तीसरा - ५५२७१ - चौथा - चौथा -, ५५२७१ - पांचवा - पांचवा - ५५२७१ - गजदंत वक्षस्कार पर्वत ३८६८६७ योजन कुल विस्तार आसूत्तरासु कुरुषु, नीलवद् गिरि सन्निधौ । राजते धातकी वृक्षो, जम्बू वृक्ष इवापराः ॥ २०२॥ माने स्वरूपेत्वनयोर्विशेषोऽस्ति न कश्चन । किंतु तस्या नादृत वदस्य देवः सुदर्शनः ॥ २०३॥ इस उत्तर कुरु में नीलवंत पर्वत की समीप में मानो दूसरा जम्बू द्वीप न हो ऐसा धातकी वृक्ष शोभता है । यह धात की वृक्ष प्रमाण और स्वरूप में जम्बू वृक्ष से कोई विशेष नहीं है । केवल जम्बू द्वीप का वह अनाद्दत है और धात की वृक्ष का देव सुदर्शन है । (२०२-२०३) उदीचीनासु कुरुषु पश्चाद्धेऽप्येवमीदृशः । स्यान्महा धातकी वृक्षः प्रिय दर्शन दैवतः ॥२०४॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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