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________________ (६१) यहां दोनो तट पर जो दस-दस कंचन गिरि रहे है वे जम्बू द्वीप के कंचन गिरि के समान प्रमाण वाले और शोभायमान वाले है । (१६४) किन्तु संबद्ध मूलास्तेऽमीतु व्यवहिता मिथः । योजनानां शतेनैका दशेननवमांशिना ॥१६५॥ .. परन्तु जम्बू द्वीप के कंचन गिरि पूर्वत मूल में परस्पर संबद्ध है जबकि ये कंचन गिरि पर्वत एक दूसरे के बीच में १११- १/६ योजन का अंतर वाले हैं। (१६५) तच्चैवं- एषां दशानां पृथुत्वे, सहस्र मिलिते भवेत् । तत्सहस्रद्वयादेक हृदायामाद्वियोज्यते ॥१६६॥ शेषं स्थितं सहस्रं यन्नवमिस्त द्विभज्यते । अन्तरैः कान्चनाद्रीणामेवंयथोक्तमन्तरम् ॥१६७॥ इन दस कंचन गिरि पर्वतों का पृथुत्व एकत्रित करते एक हजार योजन होता है उसे सरोवर की चौड़ाई के दो हजार योजन में से निकालने के बाद एक हजार शेष रहता है । उस हजार योजन को दस पर्वतों का नौ अंतर से भाग देने पर अन्तर आता है। (१६६-१६७) वह इस प्रकार सरोवर की चौड़ाई = २००० योजन उसमें कंचन गिरि की चौड़ाई = १००० निकाल देना १००० योजन शेष रहे । १० पर्वत के अन्तर ६ है इससे ६ का भाग देना । ६)१०००(१११ . . obno ne bo = १११- १/६ योजन कंचन गिरि का अरस पास का अन्तर आता है ।
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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