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________________ (८५) वह इस तरह से - पर्वतों को छोड़कर विजय आदि की चौड़ाई की संकलन (जोड) के तीन लाख बयानवे हजार (३६२०००) योजन का होता है और इससे शेष रहे द्वीप चौड़ाई आठ हजार योजन की आठ से भाग देने पर एक हजार योजन आता है, और वह प्रत्येक वक्षस्कार पर्वत की चौड़ाई समझना । (१६१-१६२) अन्तर्नदीविना शेषव्याससङ्कलना भवेत् । लक्षास्तिस्रोऽष्टनवतिः सहस्राः पन्चशत्यपि ॥१६३॥ अनेन वर्जिते द्वीप विष्कम्भे षड्भिराहृते । साढे द्वे योजन शते, व्यासोऽन्तः सरिता मयम् ॥ १६४॥ अन्तर नदी को छोड़कर शेष जोड़ तीन लाख अठानवे हजार पांच सौ (३६८५००) योजन होता है । और द्वीप की चौड़ाई के शेष के १५०० योजन को छ: से भाग देने से नदी की दो सौ पचास योजन की चौड़ाई आती है । (१६३-१६४) विदेहानां यत्र भावान् ,स्याद्वयासोऽन्तर्मुखादिषु। तस्मिन् सहस्रोरू शीता शीतोदान्यतरोज्झिते ॥१६५॥ शेषेऽर्द्धिते तत्र तत्र तावान् भाव्यो विवेकिभिः । विजयान्तर्नदी वक्षस्कारा यामः स्वयं धिया ॥१६६॥ . महाविदेह के मुख्य अंत आदि स्थानों में जिस स्थान में जितना व्यास हो उसमें से एक हजार योजन की चौड़ी या शीतोदा दोनों में से एक का निकाल देने पर जो योजन शेष रहे, उसे आधा करने से उस-उस स्थानों में उतने विजय वक्षस्कार और अन्तर्नदी की लम्बाई विवेकियों ने अपनी बुद्धि द्वारा जान लेना चाहिए । (१६५-१६६) द्वयोरप्यर्द्धयोरस्मिन् , द्वीपे वनमुखानि च । वक्षस्कारक्षितिभृतो, विजयाश्चान्तरापगाः ॥१६७॥ · लवणोददिशि हस्वाः क्षेत्र सांकीर्ण्यतः स्मृताः । ... दीर्घाः कालोदक कुभि, क्षेत्र बाहुल्यतः कृमात ॥१६८॥ . इस द्वीप के अन्दर महाविदेह के दोनों अर्ध विभाग में वन मुख,
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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