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________________ (८०) ऐरावतमुदीच्येषुकारात्स्वस्वगिरेर्दिशि । शिखरी पर्वतोऽन्तेऽस्य, पुण्डरीक हृदान्चितः ॥१३३॥ अस्माद्रक्ता रक्तवती स्वर्णकूला विनिर्ययुः । रक्तैखतमध्येन, याति कालोदवारिधिम् ॥१३४॥ लवणाब्धौ प्रविंशति, तथैव रक्तवत्यथ । स्वर्णकूला तु कालोदं, हैरण्यवतपध्यगा ॥१३५॥ . उत्तर इषुकार से अपने-अपने पर्वत की दिशा में ऐरवत क्षेत्र है और अन्त में पुंडरीक सरोवर से युक्त शिखरी पर्वत है उस पुंडरीक सरोवर में से रक्ता, रक्तावती और स्वर्णकूला ये तीन नदियां निकलती है । इसमें से रक्ता नदी ऐरवत क्षेत्र के मध्य में से निकल कर कालोदधि समुद्र में जाकर मिलती है । इसी तरह से रक्तवती नदी एरवत की मध्य में होकर, लवण समुद्र में प्रवेश करती है और हैरण्यवतक्षेत्र के मध्य में होकर स्वर्णकूला नदी कालोदधि समुद्र में जाकर मिलती हैं । (१३३-१३५) परं शिखरिणः क्षेत्रं हैरण्यवत नामकम् । विकटा पातिना वृत्त वैताढयेन सुशोभितम् ॥१३६॥ इस शिखरी पर्वत के बाद हैरण्यवत नाम का क्षेत्र आता है जो विकटापाती नामक वृत्त वैताढय से सुशोभायमान है । (१३६) ततो रूक्मी नाम महापुण्डरीक हृदान्चितः । गिरिस्ततो रूप्यकूलानरकान्ते विनिर्गते ॥१३७॥ हैरण्यवंत मध्येन, क्षारोदं रूप्यकूलिका । कालोदं नरकान्ता च याति रम्यकमध्यतः ॥१३८॥ उसके बाद महा पुंडरीक नामक सरोवर युक्त रूकमी नामक पर्वत आता है. और उसमें से रूप्यकूला और नरकान्ता नाम की दो नदियां निकलती है, उसमें से रूप्यकला नदी हैरण्यवंत क्षेत्र के मध्य में होकर लवण समुद्र में जाकर मिलती है और नरकान्ता नदी रम्यक् क्षेत्र के मध्य विभाग में होकर कालोदधि समुद्र में जाकर मिलती है । (१३७-१३८)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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