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(८१) ततः परं रूक्मि गिरेः क्षेत्रं राजति रम्यकम् । . मध्ये माल्यवता वृत्तवैताढयेन विभूषितम् ॥१३६॥
इस रूक्मी पर्वत के बाद रम्यक् नाम का क्षेत्र आता है, उसके मध्य में माल्यवंत नाम का वृत्त वैताढय पर्वत शोभ रहा है । (१३६)
ततोऽपि परतो भाति, नील वान्नाम पर्वतः । महाहृदः केसरीति, तस्योपरि विराजते ॥१४॥ शीता च नारी कान्ता च ततो नपौ निरीयतः । नारी. कान्ता रम्यकान्तयूंढ़ति लवणोदधिम् ॥११॥ शीता नदी तु पूर्वोक्तरीत्या कालोदवारिधौ । व्रजति प्राग्विदेहस्थ विजयव्रजसीम कृत ॥१४२॥
उसके बाद नीलवंत नाम का पर्वत शोभायमान हो रहा है । उसके ऊपर केसरी नाम का महासरोवर शोभायमान है उस सरोवर में से शीता और नारीकान्ता नाम की दो नदियां निकलती है । उसमें से नारीकान्ता रम्यक्षेत्र के अन्दर से होकर लवण समुद्र में जाकर मिलती है और शीता नदी तो पहले कहे अनुसार पूर्व महाविदेह के विजय के समुद्र की सीमा को विभाजित करती वह कालोदधि समुद्र में जाकर मिलती है । (१४०-१४२)
योजन द्वे च विकटापाति माल्यवतोर्भवेत् । . चत्वारि मेरोः स्वक्षेत्र नदीभ्यामन्तरं क्रमात् ॥१४३॥
अपने-अपने क्षेत्र की नदी का अन्तर विकटापाति से एक योजन है, माल्यवंत पर्वत से दो योजन है और मेरूपर्वत से चार योजन हैं । (१४३)
अथास्ति मध्ये नगयोनीलवन्निषधाख्ययोः ।
क्षेत्रं महाविदेहाख्यं, मन्दरालङ्कृतान्तरम् ॥१४४॥ - इन नीलवंत और निषध पर्वत के बीच में महाविदेह क्षेत्र है उसके मध्य विभाग में मेरूपर्वत शोभायमान है । (१४४)
त्रयोविंशत्या सहस्त्रैर्योजनानां त्रिभिः शतैः । चतुस्त्रिशैः समधिका, लक्षाश्चतस्र एव च ॥१४५॥