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अथोदीच्या क्षेत्रमस्माद्धरिवर्ष विराजते । सश्रीकमध्यं यद्गन्धापाति वैताढयभृभृता ॥११३॥
अब इस महाहिमवान् पर्वत से उत्तर दिशा में हरिवर्ष क्षेत्र है उसके मध्यविभाग में गन्धापाती नामक वृत्त वैताढय पर्वत शोभायमान है । (११२)
त्रयस्त्रिंशाष्टपन्चाशच्छताढयां लक्षयोजनीम् । षट् पन्चाशमं शतं, विस्तीर्णमिदमानमे ॥११४॥ द्वे लक्ष द्वादशशती, मध्येऽष्टावर्ति तथा । योजनानामंशशतं; द्विपन्चाशं च विस्तृतम् ॥११५॥ योजनानां षण्णवत्या, समन्वितम् सहस्रकैः । लक्षद्वयं सप्तशती, त्रिंषष्टयाऽम्यधिकां तथा ॥११६॥ अष्टचत्वारिंशमंशशतं पर्यन्त विस्तृतम् ।
शेषाऽस्य जम्बू द्वीपस्य हरिवर्ष समा स्थितिः ॥११७॥ .. इस हरिवर्ष क्षेत्र का विस्तार एक लाख पांच हजार आठ सौ तैंतीस . (१०५८३३) योजन और एक सौ छप्पन (१५६) अंश है, मध्य विस्तार दो लाख
बारह सौ अठानवे (२०१२६८) योजन और एक सौ बावन (१५२) अंश है, और अत्यै विस्तार, दो लाख छियानवे हजार सात सौ तिरसठ योजन और एक सौ अड़तालीस (१४८) अंश है । और इस हरिवर्ष क्षेत्र की शेष सारी स्थिति जम्बूद्वीप के समान समझ लेना चाहिए । (११४-११७)
क्षेत्रास्यास्य च पर्यन्ते निषधो नाम भूधरः । त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि, योजनानां शतानि षट् ॥११८॥ स्याद्विस्तीर्णः स चतुर शीतीन्यंशाश्च षोडश । तिगिच्छि नामा वर्वति महाहृदोऽस्य चोपरि ॥११६॥ सहस्राणि योजनानामष्टा वायामतः स च । विष्कम्भतस्तु चत्वारि, सहस्त्राणि भवेदसौ ॥१२०॥
इस क्षेत्र के अन्त में निषध नामक पर्वत है, उसका विस्तार तैंतीस हजार छ: सौ चौरासी (३३६८४) योजन है और वह हिमवान पर्वत से सोलह गुणा है । इस