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________________ (७६) अदिरस्यान्ते च महा हिमवान् योजनानि सः । एकविंशानि चतुरशीतिशतान्यथांशकान् ॥१०६॥.. पूर्वोक्त मानांश्चतुरो, विस्तीर्ण स्तस्य चोपरि । पौः परिष्कृतो भाति, महापद्मा भिधो हृदः १०७॥ इस क्षेत्र के बाद हिमवान नामक पर्वत है उसकी चौड़ाई आठ हजार चार सौ इक्कीस (८४२१) योजन है और पूर्वोक्त मान वाले हिमवान् पर्वत से चार गुणा चौड़ा है, उसके ऊपर पद्मो से युक्त महा पद्म नामक सरोवर है । (१०६-१०७) योजनानां सहस्राणि, चत्वार्येवायमायातः । . विष्कम्भतो योजनानां सहस्र द्वितयं भवेत् ॥१०॥ यह महापद्म सरोवर चार हजार (४०००) योजन लम्बा और दो हजार (२०००) योजन चौडा है । (१०८) दक्षिण स्यामुदीच्यां च, नद्यौ द्वे निर्गते ततः । रोहिता हरिकान्ता च, पर्वतोपर्युभे अपि ॥१०६॥ योजनां शतान् द्वात्रिंशतं गत्वा दशोत्तरान् । चतुश्चत्वारिंशतं च, भागान् जिह्निकया गिरेः ॥११०॥ पततः स्व स्व कुण्डेऽथ कालोदं, याति रोहिता। द्विधा कृत्वा हैमवंत, वैताढयाद्योजनान्तरा ॥१११॥ हरिकान्ता च वैताढया द्योजनद्वितयान्तरा । हरि वर्ष विभजती, प्रयाति लवणोदधौ ॥१२॥ इस महापद्म सरोवर में से रोहिता और हरिकान्ता नामक दो नदियां निकलती है और ये नदियां पर्वत के ऊपर ही दक्षिण और उत्तर दिशा में तीन हजार दो सौ दस (३२१०) योजन और चवालीस (४४) अंश जाकर जिह्विका द्वारा पर्वत ऊपर से अपने-अपने कुंड में गिरती है । उसमें से रोहिता हैमवत क्षेत्र को दो भाग करती वृत वैताढय पर्वत से एक योजन दूर रहकर कालोदधि समुद्र में जाकर मिलती है, और हरिकान्ता वृत्त वैताढय से दो योजन दूर रहकर हरिवर्ष क्षेत्र को दो भाग करती लवण समुद्र में मिलती है । (१०६-११२) .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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