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________________ (७५) शब्दापाती नाम के वृत्त वैताढय से एक योजन दूर रहकर पश्चिम दिशा तरफ मुड़कर वह लवण समुद्र में प्रवेश करती है । (६५-६६) अथास्माद्धिमवच्छैलादुत्तरस्यां व्यवस्थितम् । क्षेत्रं है मवताभिख्यमाकृत्या भरतो पम् ॥१००॥ अब इस हिमवंत पर्वत की उत्तर दिशा में रहा भरतक्षेत्र की आकृति वाला, हैमवत नामक क्षेत्र है। षट्विंशति सहस्राणि, योजनानां चतुः शतीम् । अष्टपन्चाशां लवान् द्वानवर्तिं विस्तृतं मुखे ॥१०१॥ पन्चाशतं सहस्राणि, चतुर्विंशं शतत्रयम् । चतुश्चत्वारिंशमंशशतं मध्ये च विस्तृतम् ॥१०॥ योजनानां सहस्राणि, चतुः सप्ततिमन्ततः । नवत्याढयं शतं षण्णवत्याढयं च शतं लवान् ॥१०३॥ यह हैमवत क्षेत्र मुख में छब्बीस हजार चार सौ अट्ठावन (२६४५८) योजन और बयानवे (६२). लव चौड़ा है । मध्य में पचास हजार तीन सौ चौबीस (५०३२४) योजन और एक सौ चवालीस (१४४) लव चौड़ा है और अन्त में चौहत्तर हजार एक सौ नब्बे (७४१६०) योजन तथा एक सौ छियानवे (१६६) लव चौड़ा है । (१०१-१०३) मध्येऽस्य शब्दापातीति, वृत्तवैताढयपर्वतः । सहस्र योजनोत्तुङ्गः सहस्रं विस्तृतायातः ॥१०४॥ ..' इस क्षेत्र के मध्य विभाग में शब्दापाती नाम का वृत्त वैताढय पर्वत है । उसकी ऊंचाई, चौडाई और लम्बाई १००० योजन की है । (१०४) अयं जम्बूद्वीप शब्दापातिना सर्वथा समः । .. तद्वत्सप्तान्येऽपि वृत्त वैताढया इह तत्समाः ॥१०५॥ - यह शब्दापाती पर्वत सर्व प्रकार से जम्बू द्वीप के शब्दापाती वैताढय पर्वत के समान है । इसी तरह अन्य भी सात वृत्त वैताढय पर्वत जम्बू द्वीप के वृत्त वैताढय पर्वत के समान है । (१०५)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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