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ही प्रमाण आता है। इसी तरह ही आगे भी समझना चाहिए । (योजन के ८४ विभाग कल्पना कर जम्बू द्वीप के वर्णन में योजन की १६ कला कही थी वैसा है)
पाहदाभिधानोऽस्य, मस्तकेऽस्ति महाहृदः । योजनानां द्वे सहस्त्रे, दीर्घः सहस्र विस्तृतः ॥६६॥ दश योजनानां रूपोऽस्योद्वेषोऽब्जवलयादि च । .. जम्बूद्वीपपद्महृद, इवेहापि विभाव्यताम् ॥७०॥
इस हिमवान पर्वत के ऊपर पद्म हृद नामक महा सरोवर है, जो दो हजार योजन लम्बा है । एक हजार योजन चौड़ा है और दस योजन गहरा है, तथा इस सरोवर के कमलों के वलय आदि जम्बू द्वीप के पद्म सरोवर के समान.यहां भी समझ लेना । (६६-७०)
एवं येऽन्ये वर्षधराचलेषु कुरुंषुः हृदा । : तथा नदीनां कुण्डानि, द्वीपाः कुण्डगताश्च ये ॥७१॥ अविशेषेण ते सर्वेऽप्युद्वेयोच्छ्यमानतः । जम्बूद्वीपस्थायितत्तद्वीपकुण्डहृदैः समाः ॥७२॥ . .
इसी तरह अन्य भी वर्ष धर पर्वत के ऊपर सरोवर, कुरुक्षेत्र के जो सरोवर, नदी के जो कुंड है, और कुंड में रहे जो द्वीप है उन सब की ऊंचाई और गहराई के प्रमाण में सब प्रकार से जम्बू द्वीप में रहे उन द्वीप, कुंड और सरोवर के समान ही है । कुंड और द्वीप की लम्बाई चौड़ाई एवं गहराई जम्बूद्वीप के समान यहां भी समझ लेना । (७१-७२)
ततस्तदुद्विद्धतादि तथाऽब्जवलयादि च ।
अनुच्यमानमप्यत्र, स्वयं ज्ञेयं यथाऽऽस्पदम् ॥७३॥
इससे उन स्थानों की गहराई आदि तथा कमल के वलय आदि यहां नहीं कहा है फिर भी उस स्थान में उस-उस रीति से स्वयं समझ लेना चाहिए ।
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विष्कम्भायामतस्त्वेते, सर्वेऽपि द्वि गुणास्ततः । व्यासोद्वेधाभ्यां च नद्यो, व्यासर्वनमुखान्यपि ॥७॥