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उपरोक्त सर्व पदार्थ - जम्बू द्वीप के उन-उन पदार्थों से लम्बाई और चौड़ाई में दो गुणा है, नदियों की चौड़ाई और गहराई में दो गुणा है, और वन मुख में चौडाई दो गुणा है । (७४) तथाहु - "वासहरकुरु सु दहा नईण कुण्डाई तेसु जे दीवा ।
उब्वेहुस्सयतुल्ला विक्खंभायामओ दुगुणा ॥७॥ सव्वाओविनईओ विक्खंभोव्वे हृदुगुणमाणाओ। सीयासी ओ याणं वणापि दुगुणाणि विक्खंभे ॥७॥
और कहा है कि - वर्षधर पर्वत और कुरुक्षेत्र में सरोवर, नंदी के कुंड और उसमें रहे जो द्वीप है उन सब की गहराई और ऊंचाई में समानता है, जबकि चौड़ाई और लम्बाई में दो गुणा है, और सब नदियों की चौड़ाई और गहराई द्विगुण है तथा शीता और शीतोदा नंदी के वनों की चौड़ाई द्वी गुण है । (७५-७६)
एवं च - गङ्ग सिन्धु रक्तवती रक्तेत्याख्यास्पृशामिह ।
- षट्त्रिंशशतसङ्खनां नदीनां हृद निर्गमे ॥७७॥
अध्यानि योजनानि, विष्कम्भो द्वादश स्मृतः । .: पर्यन्तेपन्चविंशं, योजनानां शतं भवेत् ॥७८॥
_ इसी तरह से गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तावती नाम की जो एक सौ छत्तीस नदियां हैं उन नदियों के सरोवर में निकलते समय में साढ़े बारह योजन की चौड़ाई होती हैं और अन्त में सवा सौ योजन की चौड़ाई होती है । (७७-७८)
___ आसां तावन्ति कुण्डानि, विस्तृता न्यायतानि च । ..' विंशं हि योजनशतं द्वीपाः षोडशयोजना ॥६॥
इन नदियों की उतनी ही (१३६) कुंड है जो एक सौ बीस योजन का विस्तृत और लम्बा है एव द्वीप सोलह योजन के होते है । (७६) ..
स्वर्णकूला रूप्यकूला, रोहिता रोहितांशिका । इत्यष्टादौ विस्तृताः स्युः, पन्चविंशति योजनीम् ॥८०॥ अन्ते च सार्द्धा द्विशतीं, सर्वत्रैतावदेव च । चतुविंशति रप्यन्तनद्यः स्युरिह विस्तृता ॥८१॥