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पन्च पन्चाशदधिकमंशानां नियतं शतम् । एतावद्भरत क्षेत्रं, पर्यन्ते विस्तृतं मतम् ॥६१॥
उसमें यहां पूर्वार्ध धातकी खंड में दक्षिण इषुकार पर्वत और हिमवान पर्वत के बीच में प्रथम भरतक्षेत्र है उसका मुख विस्तार छः हजार छ: सौ चौदह (६६१४) योजन और एक सौ उन्तीस (१२६) अंश का है । मध्य विस्तार बारह हजार पांच सौ इकासी (१२५८१) योजन और एक सौ छत्तीस (१३६) अंश का है और पर्यन्त विस्तार अठारह हजार पांच सौ सैंतालीस (१८५४७) योजन और एक सौ पचपन (१५५) अंश का है । (५७-६१)
त्रैराशि कादिना भाव्यो, विस्तारोऽन्यत्र तु स्वयम्। : ताद्दक् क्षेत्राकृत्य भावान्नात्र ज्याधनुरादिकम् ॥६२॥ .....
उसी प्रकार अन्यत्र विस्तार त्रिराशी आदि द्वारा स्वयं जान लेना चाहिए । तथा जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र अनुसार आकृति न होने से यहां पर जरा धनुष्य आदि का विधान नहीं कहा । (६२)
मध्य भागेऽस्य वैताढय, उच्चत्वपृथुतादिभिः । जम्बू द्वीपस्य भरत वैताढय इव सर्वथा ॥६३॥ आयामतः किन्तु चतुर्लक्षयोजनसंमितः । युक्तश्चोभयतः पन्च पन्चाशता महापुरैः ॥६४॥
इस धात की खंड के भरत के मध्य भाग के अन्दर वैताढय पर्वत है जिसकी ऊंचाई और चौड़ाई जम्बू द्वीप में रहे भरत क्षेत्र के वैताढ्य पर्वत का जितना है उतना सर्व प्रकार से है परन्तु लम्बाई चार लाख योजन का प्रमाण है । और दोनों तरफ दोनो श्रेणि के पचपन-पचपन महानगरों से युक्त है । (६३-६४)
उत्तरार्द्ध मध्य खण्डे, हिमवगिरिसन्निधौ । जम्बू द्वीपर्षभकूट तुल्योऽत्र वृषाभाचलः ॥६५॥
इस भरत में उत्तरार्ध के मध्य खण्ड में हिमवान गिरि के पास में जम्बू द्वीप के भरत के ऋषभकूट समान यहां ऋषभांचल है । (६५)