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जम्बूद्वीपक्षाखार्द्धिमध्य नाभि मनोहरे ।
वर्षा चलेषुकाराद्रि चतुर्दशारकान्चिते ॥ ५३ ॥
अस्मिन् महाद्वीप चक्रे, कालोदयः प्रथिस्थिरे । अरकान्तखद्धान्ति, क्षेत्राणीति चतुर्दश ॥ ५४ ॥
जम्बू द्वीप तथा लवण समुद्र रूपी जिसकी मध्य नाभि मंडल मनोहर है, तथा वर्षधर पर्वत इषुकार पर्वत आदि आराओं से युक्त है, यह धातकी खण्ड नामक द्वीप रूपी चक्र है और दूसरे चारों तरफ कालोदधि समुद्र रूपी लोहे के तख्त से स्थिर किये है उसमें चौदह क्षेत्र उस आरे के अन्तर रूप श्रेष्ठ शोभायमान हो रहे हैं । (५३-५४)
क्षेत्राणामिह पर्यन्त, एषां कालोदसन्निधौ ।
मुखं च लवणाम्भोधि समीपे परिभाषितम् ॥५५॥
इन सब क्षेत्रों का अन्तिम विभाग कालोदधि के पास में है और मुख लवण समुद्र के पास में कहलाता है । (५५)
ज्ञेयाः प्रकरणे, सामान्येनोदिता लवाः । द्वादशद्विशतक्षुण्णयोजनोत्था बुधैरिह ||५६ ॥
इस क्षेत्र प्रकरण में सामान्य रूप में विभाग ( अंश लव) कहा गया हो, वह एक योजन के दो सौ बारह भाग के अंश है । इस तरह विद्वान पुरुषों को जानना चाहिए । (५६)
तत्रेह याम्येषुकारहिमवत्पर्वतान्तरे
। पूर्वार्द्ध प्रथमं भाति, क्षेत्रं भरतनामकम् ॥५७॥ चतुर्दशानि षट्षष्टिशतानि विस्तृतं मुखे । एकस्य योजन स्यांशश्चैकोनत्रिंशकं शतम् ॥ ५८ ॥ योजनानां सहस्त्राणि, मध्ये द्वादश विस्तृतम् । सैकाशीतिं तथा षट् त्रिंशतंलवान् ॥५६॥
अष्टादश सहस्त्राणि, योजनानां शतानि च । पन्चैव सप्तचत्वारिंशद्योजनाधिकान्यथ ॥६०॥
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