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(६६)
८४)१७६८२४(२१०५
१६८
८८
८४
४४२
४२०
२२ = २१०५ २२/८४ योजन = १ अंश होता है । १- १ अंश हिमवान और शिखरी = २१०५ २२/८४-२१०५. २२/८४ ४- ४ अंश महाहिमवान, व रूकमी = ८४२१ ४/८४-८४२१ ४/८४ १६ - १६ अंश निषध और नीलवत = ३३६८४ १६/८४-३३६८४.१६/८४ ४४२१० ४२/८४ - ४४२१० ४२/८४ . . ४४२१० ४२४८४+४४२१० ४२/८४ = ८८४२१ योजन पूर्वार्ध के ८८४२१ योजन पूर्वत से रूके हुए क्षेत्र पश्चिमार्ध के ८८४२१ - - - १७६८४२ अत एव च वक्ष्यन्ते, भागाश्चतुरशीतिजाः । . . वर्षाद्रिमानेऽस्मिन् पुष्करार्द्धऽपि योजनोपरि ॥५१॥
और इसी प्रकार पुष्करार्ध क्षेत्र की योजना में भी वर्षधर पर्वत के प्रमाण के लिए चौरासी भाग आगे जाकर कहा जायेगा । (५१) .
क्षेत्राण्येतानि दधति, चक्रारकान्तराकृतिम् । क्षाराब्धिदिशि संकीर्णन्यन्यतो विस्तृतानि यत् ॥५२॥
ये सभी क्षेत्र चक्र के आरे के अन्तर की आकृति को धारण करते हैं जिससे ये क्षेत्र लवण समुद्र की ओर संकीर्ण संकरा है और कालोदधि तरफ विस्तृत है । (५२)