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________________ (६४) दो भरत के एक-एक अंश दो ऐरवत के एक-एक अंश दो हिमवान् के चार-चार अंश दो हैरण्यवंत के चार-चार अंश दो हरिवर्ष के सोलह-सोलह अंश = ३२ दो सम्यक् के सोलह-सोलह अंश - ३२ दो महा विदेह के चौंसठ-चौंसठ अंश = १२८ इस तरह कुल मिलाकर सर्व २१२ विभाग अंश होते हैं। (३८-४०) भरतैरवतेभयो वा चतुर्जा मुख विस्तृतिः । विज्ञेया है मवतयोः हैरण्यवतयोरपि ॥४१॥ षोडशध्ना हरिवर्षरम्यकद्वय विस्तृतिः । तथा चतुष्पष्टि गुणा, विदेहक्षेत्रयोर्द्वयोः ॥४२॥ भरत और ऐरवत क्षेत्र से हैमवंत (२) और हैरण्यवंत (२) की चौड़ाई मुख विस्तार चार गुणा है । हरिवर्ष (२) और रम्यक् (२) को सोलह गुणा है, और दोनों महाविदेह क्षेत्र की चौंसठ गुणा है । (४१-४२) . एवं च धातकी खण्डे, मध्यमात्परिधेरपि । पूर्वोदितादुक्तशैक्तरूद्ध क्षेत्र बिनाकृतात् ॥४३॥ . द्वादशाढयशत द्वन्द्व विभक्तादुपकल्पितैः । मुखविस्तृतिवद्भगैर्लभ्येषां मध्य विस्तृतिः ॥४४॥ इस प्रकार धात की खंड की मध्यम परिधि में से पहले कहा था उन पर्वतों से रुके क्षेत्र का निकाल देने पर दो सौ बारह से भाग देने से यथा योग्य भाग द्वारा मुख के विस्तार के समान इस क्षेत्र का मध्य विस्तार भी प्राप्त होता है । (४३-४४) तथाऽत्र कालोदासन्नात्यपर्यन्त परिधेरपि । नगरूद्धक्षेत्रहीनाद् द्वादशद्विशताहृतात् ॥४५॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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