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________________ (६२) ८८४२० २० कला (१६ कला का एक योजन होता है) +१ -१ कला ८८४२१ - १ कुल योजन । ८८४२१ योजन पूर्व धातकी खंड के छः वर्षधर पर्वत + ८८४२१ योजन पश्चिम धात की खंड के छः वर्षधर पर्वत..." १७६८४२ कुल योजन बारह पर्वत का चौड़ाई है । + २००० दो इषुकार पर्वत का । १७८८४२ योजन धात की खंड के कुल वर्षधर पर्वत-इषुकार पर्वत का विस्तार हुआ । द्वे योजन सहस्रे च विष्कम्भ इषुकारयोः । तस्मिंश्च योजितेऽत्राद्रि रूद्ध क्षेत्रभिदं भवेत् ॥३२॥ एकं लक्षं योजनानां, सहस्राण्यष्ट सप्ततिः । .. द्वि चत्वारिंशदधिकान्यष्टौ शतानि चोपरि ॥३३॥ दोनों इषुकार पर्वत की चौड़ाई दो हजार योजन की है वह उस में मिलाने से पर्वतों द्वारा रोकने का क्षेत्र एक लाख अठत्तर हजार आठ सौ बयालीस योजन होता है । (३२-३३) अथैतल्लवणाम्भोधि परिधेरपनीयते । . द्वादशाभ्यां शताभ्यां च तेन न्यूनः स भग्यते ॥३४॥ लब्धानि योजन सहस्राणि षट् षट् शतानि च । चतुर्दशाढयानि भागाश्चैकोनत्रिंशकं शतम् ॥३५॥ द्वादशाढय शत द्वन्द्व क्षुण्णैकयोजनोद्भवाः । , तत्रेयत्पृथवस्तेऽशा, द्वि शती द्वादशा भवन् ॥३६॥ अथ चैतादृशैरंा स्वमुपकल्पितैः । . चतुर्दशानां क्षेत्राणां लभ्यते मुख विस्तृतिः ॥३७॥ .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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