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________________ (६०) ततश्च हैरण्यव्रतमैरावतं ततस्ततः 1 औत्तराह इषुकार, एषा पूर्वार्द्ध संस्थितिः ॥ २० ॥ वह इस तरह है - यहां जम्बू द्वीप के मेरू पर्वत की अपेक्षा से दक्षिण दिशा में जो इकार पर्वत है । उस इषुकार पर्वत से पूर्व में प्रथम भरत क्षेत्र आता है, उसके बाद हैमवंत क्षेत्र, फिर, हरिवर्ष क्षेत्र, बाद में महाविदेह क्षेत्र, उसके बाद रम्यक् क्षेत्र, बाद में हैरण्यवत क्षेत्र उसके बाद ऐरवत क्षेत्र और उसके बाद उत्तर का इषुकार पर्वत आता है । यह पूर्वार्ध घातकी खंड की स्थिति है । (१८-२० ) पश्चिमायामपि तस्माद्दाक्षिणात्येषुकारतः । प्रथमं भरतक्षेत्रं, ततो हैमवताभिधम् ॥२१॥ एवं यावदौत्तराह, इषुकार धराधरः । पूर्वार्द्धवत्क्षेत्ररीतिरेवं पश्चिमतोऽपि हि ॥२२॥ उस दक्षिण दिशा के इषुकार पर्वत से पश्चिम दिशा में भी प्रथम भरत क्षेत्र उसके बाद हैमवंत आदि इसी तरह से उत्तर के इषुकार पर्वत तक का जानना । यहां पूर्वार्ध के सद्दश पश्चिमार्ध में भी क्षेत्र व्यवस्था जानना । (२१-२२) द्वयोरप्यर्द्धयोरेषां, क्षेत्राणां सीमकारिणोः । षट् षट् वर्षधराः प्राग्वत्, सर्वेऽपि द्वादशोदिताः ॥२३॥ इन क्षेत्रों की सीमा का विभाग करने वाला, दोनों के अर्ध विभाग में छः-छः वर्षघर पर्वत पहले के समान है, वे सभी मिलाकर बारह वर्षधर पर्वत है । (२३) जम्बूद्वीपवर्ष धराद्रिभ्यो द्विगुणविस्तृताः । तुङ्गत्वेन तु तैस्तुल्याः सर्वे वर्षधराद्रयः ॥२४॥ ये सारे वर्षधर पर्वत जम्बूद्वीप के वर्षधर पर्वत से दो गुणा चौड़े है, और ऊंचाई में सब समान है. । (२४) आयामतश्चतुर्लक्षयो जनप्रमिता मी । पर्यन्तस्पृष्टकालो दलवणोदधि वारयः ॥२५॥ लम्बाई में ये सब वर्षधर पर्वत चार लाख योजन के है और दोनों अन्तिम विभाग कालोदधि तथा लवण समुद्र के पानी को स्पर्श करते हैं । (२५)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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