________________
(५७) बाईसवां सर्ग धातकी खंड द्वीप का स्वरूप
अथास्माल्लवणाम्भोधेरनन्तरमुपस्थितः ।। वर्यंते धातकीखण्डद्वीपो गुरुप्रसादतः ॥१॥
अब इस लवण समुद्र के बाद धातकी खण्ड द्वीप का वर्णन गुरुदेव की कृपा से करता हूँ । (१)
वृक्षेण धातकीनाम्ना, तदसौ शोभितः सदा । वक्ष्यमाण स्वरूपेण, ततोऽयं प्रथितस्तथा ॥२॥
जिसका आगे वर्णन करने में आयेगा वह धातकी नाम के वृक्ष से हमेशा शोभित होने से यह द्वीप धातकी खंड रूप है प्रसिद्ध हुआ है । (२)
चतुर्योजन लक्षात्मा, चक्रवाल तथाऽस्य च । विस्तारो वर्णितः पूर्णज्ञानालोकितविष्टवैः ॥३॥
केवल ज्ञान द्वारा समग्र विश्व के दर्शक श्री भगवान ने इस द्वीप को चकवाल-गोलाकार चौड़ाई चार लाख योजन कहा है । (३)
. परिक्षेपः पुनरस्यः कुक्षिस्थ द्वीपवारिधेः । . .. त्रयोदश लक्ष रूपःक्षेत्र लब्धोऽमीरितः ॥४॥ - मध्य के द्वीप समुद्र (जम्बूद्वीप-लवण समुद्र) के क्षेत्र से प्राप्त हुए तेरह लाख योजन रूप व्यास इस धातकी खंड द्वीप का है । (४)
लक्षाः किलैकचत्वारिंशत्सहस्राण्यथो दश । योजनानां नवशती, किन्चिदूनैकषष्टियुक् ॥५॥ अयं कालोदपार्वेऽस्य, परिधिश्चरमो भवेत् । आद्यस्तु लवणाम्भोधेरन्ते यः कथितः पुरा ॥६॥
तथा इकतालीस लाख, दस हजार, नौ सौ और कुछ कम इकसठ योजन की परिधि है यह परिधि कालोदधि समुद्र के पास में है, उसे चरम परिधि कहते